Saturday, May 10, 2008

मदर्स डे की पूर्व संध्या पर पढिये…ये मार्मिक पंक्तियाँ !


माँ पर ख़ूब लिखा जा रहा है इन दिनो।
जुदा जुदा अंदाज़,नई नई उपमाएँ,नए नए
प्रतिमान…कहीं ये पंक्तियाँ पढीं थीं…और अपनी
डायरी के हवाले कर दी थी…आज अनायास याद
आ गईं सो आपके साथ बाँट रहा हूँ…कवि का नाम
नोट नहीं कर पाया…यदि आपकी आँखें इन पंक्तियों
को पढ कर भीग जाएँ तो उस अनाम शायर के नाम
कर दीजियेगा अपनी आँसू भरी दाद……



चारपाई पर
बिस्तर को बिछाते
माँ को देखा है कभी ?
सीधा करती है
चादर को कैसे
कि एक-आध सिलवट भी
तुम्हारे बदन में न चुभ जाए !


(पोस्ट के साथ जारी ये चित्र ख्यात कलाकार
जामिनी राय का कमाल है.)

5 comments:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

नरसिँह मेहता भी कह गये,
"गोळ विना सुनो कँसार्,
मात् विना सुनो सँसार
मात विना ते शो अवतार ? "
वाह -- बहुत सुँदर पँक्तियाँ
आपके आसपास की हर माँ को
आज, अवश्य कहियेगा,
" Maa tujhe Salaam "
-- लावण्या

एक पंक्ति said...

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करते हुई ख़्वाब में आ जाती है

राकेश जैन said...

bahut bada sach likh dia in panktiyon men.

Ila's world, in and out said...

मां तुझे सलाम. उस कवि को भी सलाम जिसने ये पंक्तियां गढीं. आपको भी सलाम इस कविता को हम तक पहुंचाने का.

mamta said...

माँ को वर्णित करती बेहतरीन पंक्तियाँ।