Thursday, June 7, 2007

इंसान से बडा़ नज़र आता है हमारा श्वान

मेरे बच्चे बहुत दिनों से ज़िद कर रहे थे डैडी घर में एक कुत्ता पाल लेते हैं।मैने अपने पिताजी से बात की तो वे राज़ी नहीं हुए।कुछ ऐसा हुआ इसके बाद कि मै संयुक्त परिवार से अलग बसेरे में आ गया जो मेरे कार्य-स्थल के ठीक ऊपर है। यानी पहली मंज़िल पर।यहां आते ही बेटी और ख़ासकर बेटे ने घर में श्वान लाने की ज़िद को आंदोलन का रूप दे दिया।संयोग कहूं या मेरी औलादों की क़िस्मत बहुत जल्द ही घर में श्वान आ गया।काला,बड़ा प्यारा सा,दस दिन का था जब हमारे परिवार में शरीक हुआ वो।बेटी का नाम दिशा है और बेटे छोटू कहते हैं॥ यानी दो शब्द मिल गये हमें .सी छोटू के लिये और डी दिशा के लिये॥श्वान को नाम मिल गया सीडी । उसके पंजों पर सुनहरी रंग के निशान है आंखों पर भी और छाती पर भी।पिछ्ले दिनों उसने हमारी गृहस्थी में आने के तीन साल पूरे कर लिये हैं।वो हमारे बहुत से इशारे और शब्द समझ गया है इन सालों में।उसने घर में अपने निशान बना रखे हैं कि वह कहॉ कहाँ तक और किस किस कमरे में आ - जा सकता है।वह डेशुंड प्रजाति का श्वान है॥अब सच मानिये उसे कुत्ता कहने में संकोच होता है॥वह हम सबका प्यारा सीडी जो ठहरा।वह एक छोटे क़द का श्वान है...बहुत भोला , समझदार और सतर्क। हमारे पडौसी के घर की मुंडेर पर देर रात ख़ामोशी से जा रही बिल्ली भी सीडी की नज़रों से ओझल नहीं हो सकती। सीडी बहुत मिलनसार और दोस्ती निभाने वाला श्वान है।वह एक बार आपसे मिल ले तो आपको भूलता नहीं।दिन भर दुम हिलाना उसका सबसे खा़स शग़ल है।उसे घर की रसोई,मंदिर और शयन-कक्ष में जाने की इजाज़त नहीं है तो वो वहां नहीं जाता।आप ज़िक्र भर कर दें कि सीडी तुम्हारा बेल्ट कहां है॥यकी़न जान लें सीडी बाक़ायदा कहीं से भी अपना बेल्ट ढूंढ ही लाते हैं।सीडी बहुत संवेदनशील भी है...हम जब भी प्रवास पर जाते हैं तो उसे हमारे सामान यानी बैग्स से मालूम पड़ जाता है कि घर के लोग कहीं बाहर जाने वाले हैं। अपनी खु़राक़ के मामले में सीडी बिल्कुल भी चटोरा नहीं है।उसे तो हमारी श्रीमतीजी (जिन्हें मेरे अलावा सीडी भी घर की मालकिन ही मानता है ) डरा-धमकाकर ही भोजन खिला पाती हैं।सीडी से में स्वामी-भक्ति का गुण तो सीखने जैसा है ।उससे सबसे प्यारी और महत्वपूर्ण बात सीखने की है उसका अपने परिवार यानी हम सबके लिये सत्कार भाव।हममें से कोई भी या हम सब बाहर से किसी भी वक़्त घर लौटे सीडी सो रहा हो या अपना भोजन कर रहा हो ॥तुरंत दरवाज़े पर आपके स्वागत के लिये तत्पर मिलेगा और कूद-कूद कर पूंछ ज़ोर ज़ोर से हिलाते हुए जताएगा कि वह आपके घर लौटने से कितना खु़श है।वह सिर्फ़ बोलना नहीं जानता लेकिन अपने आपको व्यक्त तो कर ही देता है।उसका हर वक़्त इस तरह हमारी बाट जोहना संदेश और नसीहत देता है कि मेहमाननवाज़ी एक संस्कार है जिसे मनुष्य तक़रीबन भूलता जा रहा है। उसकी अपनी प्राथमिकताएं हैं , बिज़नेस कमिट्मेंट्य हैं,अभिरुचियां हैं और हैं स्वार्थ से जुडे़ कुछ सरोकार जिससे वह तय करता है कि किससे मिलना है...किससे नहीं आपके घर का चौपाया आप पर निर्भर है लेकिन तहज़ीब के नाम पर उसने अपनी प्रतिबध्दताएं नहीं बदलीं हैं।सीडी हमारा श्वान ही सही लेकिन वह कभी कभी एक पाठशाला बन जाता है...इंसान से बडा़ नज़र आता है सीडी.Technorati Profile

3 comments:

Unknown said...

hum sabhi aapki lekhani ke deewane hain...Apse maine ek chiz sikhi hai aur wo hai ATTITUDE. Humare aas pass istna kuch ghat raha hai ki hum har chiz se prerna le sakte hain....please keep bloging......

Abhi said...

Well uncle the satire u wrote on today's scenario is really true and fits in all aspects of our life. The importance we are giving to other non-important things(and not necessarily to the Dog! after all he is also a living being), but to other things which are not required is slowly and steadily taking us away from the Humanity for which our species is known.
Great Work, I must say and please keep on writing more and more......its a pleasure to read ur WORK!!!

मैथिली गुप्त said...

सही कह रहे हैं संजय जी; भले ही ये बच्चा बोलना न जानता हो पर व्यक्त तो कर देता ही है. प्यार व्यक्त करने के लिये किसी भी भाषा की जरूरत नहीं होती.
मेरे पास भी एक इतना प्यारा बच्चा है.