Monday, May 28, 2007

एम्.एस.सुब्बुलक्ष्मी के स्वर मे मीरा की वेदना



आईये आज उस मीरा की चर्चा कर ली जाए जिसको पूरे विश्व ने न केवल गाते देखा बल्कि उसके अलौकिक स्वर का रस भी चखा है. मेरा इशारा सुधिजन तो समझ ही गये होंगे. दक्षिण की इस अदभुत स्वर कोकिला को कौन नहीं जानता.....जी हुज़ूर मै एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी की ही बात कर रहा हूं..जिन्हे भारतरत्न जैसे सर्वोच्च नागरिक अलंकरण से नवाज़ा गया था. मै अपने इस चिट्ठे के ज़रिये आपके साथ यह सत्य बांटना चाहता हूं कि सुरों की गंगा बहाने वाली एम.एस.की निजी ज़िंदगी बहुत मुश्किलों से भरी थी. वे देवदा़सी प्रथा से आईं थीं और उनकी मां ने एम.एस. का विवाह दक्षिण भारत के एक बडे़ राज-परिवार शे ताल्लुक रखने वाले शख़्स से करने वालीं थीं .बहुत कम लोगों को मालूम है कि एम.एस दक्षिण के एक जाने-माने कलाकार से अगाध प्रेम करतीं थीं ..उनके प्रेम पत्रों के भाव पूर्ण अंश पढने लायक हैं.कालान्तर में एम.एस. एक नामचीन कला-पत्रकार के संपर्क में आईं और उनके साथ ही जीवनपर्यंत जुड़ी रहीं एम.एस का करियर निखारने में इस गांधीवादी पत्रकार का बहुत बड़ा योगदान है. रेखांकित करने वाली बात यह है कि ये पत्रकार विवाहित थी और दो बेटियों के पिता भी थे.एम.एस. अपनी मां के क्रूर रवैये से परेशान होकर इनके पास चली आईं थी. इस दबंग पत्रकार ने एक तरह से एम.एस. को अपने घर में शरण दी और एक तारिका के रूप में इस स्वर विदुषी को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. ज़ाहिर है उनका खुद का दांपत्य एक खू़बसूरत कलाकार के घर में आ जाने से संकट में आ गया था.ये वरिष्ठ पत्रकार महोदय अपने समय के अत्यंत प्रभावी व्यक्ति थे.कला और फ़िल्म क्षेत्र में उनका ज़बरद्स्त दबदबा था...उन्होने एम.एस.के लिये सारे प्रभावों का इस्तेमाल किया.एम.एस. ने एक सच्ची गृहस्थिन की तरह अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह किया.आप जानकर रोमांचित होंगे कि एम.एस. ने अपने पति के लिये न केवल अपने प्रेम को दांव पर लगाया किंतु उनकी पुत्रियों की एक मां की तरह परवरिश की. फ़िल्म मीरा में एम.एस.ने मीरा का स्वांग धरा बल्कि सुमधुर मीरा गीतों का गान भी किया.आधुनिक मीरा के रूप में हम संगीतप्रेमी जिन दो आवाज़ों से वाकिफ़ हैं संयोग से दोनो अहिन्दीभाषी हैं...एम.एस.सुब्बुलक्ष्मी (दक्षिण भारत ) और जुथिका राय (बंगाल)एम.एस.के स्वरों की पवित्रता का प्रवाह हमारे कानों से ह्रदय में उतरकर हमारे मन को वृंदावन बना देता है. मीरा के पद जैसे उनके कंठ से झर कर हमारे पापों का नाश कर देते हैं.वे दु:ख नाशिनी बन कर मानों हमारी नैया को पार लगा देतीं हैं.एम.एस. का स्वर क़ायनात का पवित्रतम स्वर है.अब जब भी एम.एस.सुब्बुलक्षमी को सुनें तो उनके संघर्ष और भोगे गये यर्थाथ को भी याद करें ..आपको लगेगा मीरा के पदों के पीछे एक और मीरा रस घोल रही है।
आइये कानों को देते हैं वह पुण्य-प्रसाद जो अलौकिक सुर बन कर पूरे ब्रम्हांड पर छाया है.सुब्बुलक्ष्मी फ़िल्म मीरा में स्वयं मीरा का किरदार निभा रहीं हैं यह वाक़ई एक दुर्लभ वीडियो है आपके लिये..

5 comments:

Unknown said...

सुब्बलक्ष्मी पर लेख लिखकर आपने मजा ला दिया, वाकई "आज के मीडिया" ने जिन लोगों को लगभग भुला दिया है, आपके ब्लॉग ने यादें ताजा कर दीं... साधुवाद...

Unknown said...

आपके पर्यावरण वाले ब्लॉग पर टिप्पणी भी मैं यहाँ करना चाहूँगा, रचनाकार पर नहीं... कि वाकई पर्यावरण को लेकर हमारे यहाँ एक किस्म का पाखंड चलता है... फ़ोटो खिंचवाना अधिक महत्वपूर्ण हो गया है... बहुत सटीक लिखा है आपने खासकर लिफ़ाफ़ों के बारे में बहुत ही उपयोगी सुझाव है.. बढिया लेख के लिये बधाई..

अनुनाद सिंह said...

आपके विचार पढ़कर मजा आ गया। जिन विषयों को आपने चुना है वे महत्वपूर्ण और गंभीर हैं। अशोक चक्रधर जी के ब्लाग पर आपकी टिप्पणी भी हिन्दी प्रेमी के नाते मुझे आनन्दित कर गयी।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

http://antarman-antarman.blogspot.com/2006/10/ms-subbalaxmiji-bharat-kokila.html

आपका ब्लोग देखा और बहोत पसँद आया --
ये श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी जी पर लिखा मेरा लिन्क देखियेगा --
स -स्नेह,
लावण्या

Sagar Chand Nahar said...

श्रीमती सुबलक्षमी जी के मीरा के भजन कोई सुनना चाहे तो मेल करें
sagarchand dot nahar et gmail.com