Wednesday, November 14, 2007

सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से मर जाना !

आज एक पत्रकार मित्र द्वारा भेजे गए निमंत्रण पत्र में लिखी पाश की यह कविता मन को छू गई भीतर तक और प्रेरित कर गई कि तत्काल से पहले इसे आपके साथ बाँट लूँ...मुलाहिज़ा फ़रमाएँ........

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती

पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती

ग़द्दारी , लोभ की मुठ्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती


सबसे ख़तरनाक होता है

मुर्दा शांति से मर जाना

न होना तड़प का

सब सहन कर जाना

घर से निकलना काम पर

और काम से लौटकर घर आ जाना

सबसे ख़तरनाक होता है

हमारे सपनों का मर जाना.

8 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से मर जाना
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मैं तो कतरा कर निकल रहा था पर इन पंक्तियों ने रोक लिया। बहुत अच्छा लिखा जी।

atul_arts said...

कोई इस कविता को पढ़ कर
इस की तारीफ ना करे!!!
मुझे लगता है
"वो सब से ख़तरनाक बात होगी"

Sanjeet Tripathi said...

धारदार, शानदार!!

बालकिशन said...

इतनी अच्छी कविता पढाने के लिए धन्यवाद.
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना.

Manish Kumar said...

क्या बात है हुजूर, बहुत बढ़िया कविता पेश की आपने!

Batangad said...

सबसे खतरनाक होता है बिना जिंदगी को जिए जिंदा रहना और मर जाना

मीनाक्षी said...

बालकिशन जी से सहमत हूँ ...सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना...सपनों के बिना जीना जैसे मुर्दा शांति से मर जाना... !

अजित वडनेरकर said...

सुंदर बातें पाश की । बहुत दिनों बाद लगा आपके धाम का फेरा । नई सज धज अच्छी लग रही है।