कैलाश खेर जैसे कलाकार को सुनाना एक अनुभव गुजरना है . सोचकर हैरत होती है कि तथाकथित celebrity culture में ये बन्दा इतना simple and modest कैसे रह सकता है.आवाज़ में बला का सा तूफ़ान और संगीत की लाजवाब पकड़ इस artist को भीड़ से अलग बनाती है.कैलाश खेर जिनका अल्बम कैलासा इनदिनों चर्चा में है ;यूँ ही कामयाबी नही हासिल कर ली है.उत्तरप्रदेश के मेरठ में जन्मे कैलाश ने छोटी सी ज़िंदगी में बहुत संघर्ष किया है.दिल्ली में रहकर कैलाश ने पं मधुप मुदगल जैसे गुणी कलाकार से तालीम हासिल की । वैसे कैलाश को सुनाने की बाद लगता नहीं कि उन्हें किसी तालीम की ज़रूरत पड़ी होगी। वे तो मास्टर मदन, कुमार गन्धर्व या लता मंगेशकर की तरह ऊपरवाले द्वारा बना कर भेजे गये हैं। advertising jingles गाकर मुम्बई में अपने career का आगाज़ करने वाले कैलाश का संगीत और स्वर आज फ़िज़ाओं में महक रह है तो इसके पीछे उनकी ईश्वर के प्रति अगाध आस्था और स्वभाव की विनम्रता है। फिल्म मंगल पांडे और सलाम इश्क मे गाये गीतों से मिली शोहरत के अलावा कैलाश खेर के प्रायवेट एलबम उन्हें खासी लोकप्रियता दीं है। अल्ला के बन्दे जैसे गीत के बाद कैलाश खेर संगीतप्रेमियों का दुलारा कलाकार बन गया है.सफलता के बावजूद कैलाश खेर अतीत भूले नहीं हैं और स्वीकार करते हैं कि श्रोताओं से मिला प्यार ही उनकी आवाज़ से झरता है.
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