धरती पर बारिश की पहली बूँदें एक ख़ास क़िस्म की ख़ुशबू लेकर आती है.ये
अलग बात है कि हम इसका नोटिस नहीं लेते. हुआ कुछ यूँ है कि हमने क़ुदरती चीज़ों का मज़ा लेना कुछ कम कर दिया है. अब हमारे इर्द-गिर्द सबकुछ बनावटी सा ज़्यादा है. हम समय भी तो नहीं निकाल पाते कि देखें कि आज ये जो बारिश की पहली फ़ुहार आई है ये अपनी साथ इन बूँदों के अलावा और क्या क्या लाई है. कौन सी यादें हैं इन बूँदों मे पोशीदा. क्या ये किसी से पहली मुलाक़ात की याद दिलाती है. क्या ये किसी ग़ज़ल के शेर को कानों में ला समेटती है.
क्या ये पक्के मकानों के बीच उस माज़ी की याद का सबब बनती है जब गाँव
के खेत थे,कच्चे मकान की खपरैलों से टपकता पानी था और उसमें झरती थी एक
लयबध्द मीठी मौसीक़ी.पत्ते यूँ दमक जाते थे जैसे आज ही कोई इन्हें बड़े प्यार से
झाड़-पोंछ गया है.मवेशी पेड़ के नीचे भीगते से और ख़ामोशी से आपसे में बतियाते.
जैसे अपने मालिक का शुक्रिया अदा करते हों जो उनका बड़ा ख़याल रखते हैं.
इंसानी रिश्ते बड़े मख़मली थे.बरसात की इन बूँदों से तीज-त्योहारों की आमद का आग़ाज़ होता था.पराये घर ब्याही बेटी को घर लाने बातें शुरू हो जाती थी.इंतेख़ाब होता था कि अबकी पानी अच्छा आया तो नये कपड़े ख़रीदेंगे,घर के बड़े बेटे के लिये बहू लाने की बात आगे बढ़ाएंगे.मिल बैठ आज शाम मल्हार गाएँगे.
बारिश अब भी आती है....सिर्फ़ ये तसल्ली देने के लिये कि इस साल चालीस
इंच पानी गिरा तो शहर में अमन चैन बना रहेगा,टेंकर से पानी नहीं डलवाना पड़ेगा.
काम धंधा और ग्राहकी ख़ूब चलेगी..शेयर बाज़ार फ़लेगा-फ़ूलेगा.किसी को इतनी
फ़ुरसत कहाँ कि वह पहली बारिश के बाद गमले में खिले और हमें देखकर मुस्कुरा
रहे प्यारे से फूल को निहारे.वह हमसे पूछ रहा है ’कैसे हैं आप’
अब वह तो ऐसे ही पूछता है...उसको आपके ज़माने के आदाब कहाँ आते है.
न वह आपको एस.एम.एस. कर सकता है न ई-मेल भेज सकता है.
ज़रा उसकी प्यार भरी आँखों में झाँक कर तो देखिये आपको वह ताज़ा फूल
बोलता सुनाई देगा.
(चित्र ;गूगल सर्च पर मिला है;धन्यवाद)