चार हज़ार से अधिक लाइव कंसर्ट्स, 150 से अधिक एलबम्स और 1200 से अधिक ध्वनि मुद्रित रचनाओं के मालिक भजन सम्राट श्री अनूप जलोटा पूरी दुनिया में भक्ति संगीत और ग़ज़लों के लिए जाना- पहचाना जाने वाला एक घरेलू नाम बन गया है। अभी कल ही वे मेरे शहर इन्दौर में एक कार्यक्रम प्रस्तुत करने आए थे.अनायास उनसे
हुई एक पुरानी मुलाक़ात का स्मरण हो आया तो सोचा आपके साथ उस बातचीत को बाँटा जाए .मैने उनसे पूछा था कि शास्त्रीय संगीत की तालीम, फिल्म संगीत के एकाधिक अवसरों के बावजूद अनूप जलोटा का मन भजनों में ही क्यों रमता रहा है, अनूपजी ने मुस्कुराते हुए कहा कि शायद ये ऊपर वाले की मर्ज़ी का परिणाम है । उसने मुझे आवाज़ दी और कहा- जाओ मेरे गुण गाओ। बस गली-गली, डगर-डगर, नगर-नगर में उस परम सत्ता का यशगान कर रहा हूँ। अनूपजी ने बताया कि यदि भक्ति संगीत में जगह नहीं मिलती तो उनके पास एकमात्र विकल्प शास्त्रीय संगीत था, क्योंकि पिता पं. पुरूषोत्तमदास जलोटा ने बचपन से ही उनके मन में क्लासिकल मौसीक़ी का बीजारोपण किया था।
एक समय ऐसा था जब वाणी जयराम, हरिओम शरण, शंकर शंभू, निर्मला देवी, लक्ष्मी शंकर, सी.एच. आत्मा के साथ ही चित्रपट संगीत के कई प्रमुख गायक भी भक्ति संगीत के परिदृश्य पर अपनी विशिष्ट पहचान रखते थे। क्या कारण है कि स्वर परिदृश्य एकदम खाली हो गया? अनूपजी ने मुखरता से कहा कि गाने वालो ने भजन गायकी में दोहराव ज़्यादा दिया, विविधता नहीं दी। उन्होंने ये किया कि भजन गायकी में रागों की गंध डाली, उसमें शास्त्रीय, सुगम और लोक संगीत के ताने-बाने पिरोए। इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं दो भजन "चदरिया झीनी रे झीनी, और "ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन'। अनूपजी ने बताया कि इन दोनों रचनाओं में उन्होंने विभि रागों के शेड्स , धुन, तान और सरगम-पलटों का उपयोग करते हुए प्रभाव बनाने की कोशिश की है उससे ही उनके गायन को अपार सफ़लता मिली है।
नैनीताल में जन्में और लखनऊ में अपने कैरियर का आग़ाज़ करने वाले अनूपजी ने आकाशवाणी से अपनी स्वर यात्रा प्रारंभ की। लखनऊ यूनिवर्सिटी में अनूप जलोटा एक बहुत प्रतिभासंप गायक के रूप में जाने जाते थे,जहॉं स्वर्गीय किशोर कुमार के गीत गा-गाकर वे जूनियर किशोर के ख़िताब से नवाज़े जा चुके थे । उन्होंने फ़िल्मी गानों का दामन पकड़कर स्टेज शोज प्रारंभ किए, जिसमें उन्हें 35 से 80 रु. तक का भुगतान मिल जाया करता था। मुंबई आकर अनूप जलोटा को लगा कि यही वह जगह है जहॉं से वे अपनी कला यात्रा को आगे ले जा सकते हैं। मुंबई के आकाशवाणी वाद्य-वृंद समूह में उन्होंने अपनी शुरूआती नौकरी की और साढ़े तीन सौ रु. महीना मेहनताना पाया। निर्माता और अभिनेता मनोज कुमार की फ़िल्म "शिर्डी के सॉंई बाबा' से अनूप जलोटा को विश्वव्यापी पहचान मिली। अनूपजी ने बताया कि फ़िल्म 'एक दूजे के लिए' में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के निर्देशन में उन्होंने लताजी के बहुत लोकप्रिय गीत "ऐ प्यार तेरी पहली नज़र को सलाम' के पहले पहली पंक्ति गाई थी, उसे संगीत प्रेमी आज तक याद रखे हैं। वह पंक्ति थी " कोशिश कर के देख ले, दरिया सारे, नदिया सारी'। लेकिन अनूपजी कहते हैं 'शिर्डी के सॉंई बाबा' तक बात तो बात ठीक थी लेकिन फ़िल्म-म्युज़िक में उनका मन नहीं लगा, सो उसे छोड़ दिया। यह पूछने पर कि इतने वर्षों से भक्ति संगीत विधा में काम करते-करते क्या कोई ईश्वरीय अनुभूति उन्हें हुई है। अनूपजी ने कहा सारा भक्ति संगीत ही अपने आप में एक अनुभूति है। जब गाने बैठता हूँ तो यह नहीं देखता कि कितने ख़ूबसूरत मंच पर बैठा हूँ कितने पैसे मुझे मिलने वाले हैं, सामने किस पद-प्रतिष्ठा के लोग बैठे हैं। बस मन में ध्यान होता है अपने गुरूजनों और उस बंदिश में मौजूद स्वरूप का। कई बार एकाएक समाधि सी अवस्था हो जाती है और बस वे एक यंत्र बनकर गा रहे होते हैं । समझ में नहीं आता कि कहाँ से शब्द आते हैं, कौन सी धुन सिरजती है, स्वर कैसे लग जाते हैं। शायद अनूप जलोटा ठीक फरमाते हैं कि परमात्मा को याद कर के गाते-गाते अपने आप को भूल जाना ही सच्चा भक्ति संगीत है।
10 comments:
अनूप जलोटा जब भजन गाते गाते बीच में भजन की पंक्तियों को अलग अलग राग में गाते हैं तब बहुत अच्छा लगता है। चदरिया झीनी रे झीनी में तो आपने कमाल किया है।
देस राग में गाये इस भजन की लाइनों ध्रुव, प्रह्लाद सुदामा ने ओढ़ी चुनरिया को राग केदार, राग मालकौंस, राग काफ़ी, राग बसंत और राग भैरवी में गाकर संगीत प्रेमियों को अनमोल तोहफा दिया है।
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कई भजनों में प्रीलूड के तौर पर कुछ लाइने गाते हैं वे बहुत सुन्दर होती है जैसे मीरा के भजन मैने लीनो गोविन्दो मोल में..
पलका पर सोवत कामिनी रे, ज्ञान ध्यान सब पी संग लाग्यौ
पल में लग गई पलकन मोरी- मीचत ही पल में पिया आयो
मैं जो उठी पिया आदर देने- जाग पड़ी पिआ हाथ ना आयो
और सखी पिया सोकर खोया, मैं अपना पिया जागी गवायों..
मन खुश कर दिया आपने संजय भाई.. टिप्पणी लिखते हाथ की बोर्ड से हट नहीं रहा, भय है कहीं पोस्ट से बड़ी ना हो जाये।
:)
उनके पिताजी पुरुषोत्तम जलोटा जी के भक्ति रस मेँ पगे स्वर भी दीव्यानुभूति करवाते हैँ और सँभ्राँत कुलीन घर की बँबई शहर की अनेक कन्या, वधूओँ को सँगीत की तालीम भी वे देते रहे हैँ -
बम्बई मेँ मेरी अनुप भाई से मुलाकात हुई थी -
उन्होँने भजन गायकी को मँच पर सफल करने मेँ बहुत बडा योगदान दिया है - अगर वे अब भी आपके शहर मेँ होँ और आपकी मुलाकात हो तब मेरे नमस्ते अवश्य कहियेगा उनसे - पोस्ट पढकर बहुत खुशी हुई -
सँगीत क्षेत्र के बारे मेँ आपकी जानकारी अभूतपूर्व है -
उसी से और बातेँ भी लिखियेगा
-स सनेह , सादर,
- लावण्या
Sanjaybhai
Very interesting info.
Nice VDO.
Thanx.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
anup ji ke bhajan hamare all time fav hain-subah office jaane ke waqt unhin ka bhajan chalta hai--koi koi to bhajan itna lamba hota hai-15 min appx-ki poora rasta ek bhajan mein hi kat jaata hai--
un ke baare mein kuchh jaankariyan yahan bilkul nayee milin--
dhnywaad
ईश्वर की बात सुनकर ही तो गा सके....ऐसी लागी लगन। अच्छा लगा पढ़कर।
इतना मधुर भजन सुनवाने के लिए धन्यवाद।
घुघूती बासूती
मन की चुनरिया रंग गई आपके स्नेहमय प्रतिसाद से.
आभार.
साधुवाद,
सुन्दर भजन के लिए
अनूप जी से अपनी पुरानी मुलाकात को यहाँ बाँटने के लिए शुक्रिया!
अनूप जलोटा जी के भजन भारत के हर जनमानस के मानस पटल पर रच बस गया है। संगीत अनुरागीयोँ के लिये एक प्रेरणा स्रोत है।
धन्यवाद।
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