Tuesday, June 3, 2008

पाकिस्तान के राष्ट्रगीत के रचयिता हफ़ीज़ जालंधरी के दुर्लभ गीत.



उर्दू शायरी से मुहब्बत करने वालों के लिये अज़ीम शायर जनाब हफ़ीज़ जालंधरी साहब का नाम अनजाना नहीं है. पाकिस्तान का राष्ट्रगीत रचने वाले इस सूफ़ी तबियत के क़लमकार को अदब की दुनिया से बेइंतहा प्यार और आदर मिला. १९८२ में हफ़ीज़ साहब का इंतेक़ाल हुआ . मीनारे पाकिस्तान के पास उनकी मज़ार मौजूद है. नज़्म और ग़ज़ल के इलाक़े में तो हफ़ीज़ साहब की कई रचनाएं मक़बूल हुईं हैं लेकिन आज जो रचनाएँ मैं जारी कर रहा हूँ उनमें आपको हफ़ीज़ साहब की कहने में कहीं कबीर,ब्रह्मनंद और मीराबाई के रंग छाप दिखाई देगी.आप ये भी महसूस करेंगे कि सच्चा शायर हमेशा सर्वकालिक है और वह ज़ात - मज़हब से ऊपर उठ कर बात कहता है ; उसका लिखा और वह ख़ुद मुल्कों और तहज़ीबों की हदों से बाहर से होता है. हफ़ीज़ साहब की शायरी का क्राफ़्ट और सादगी पढ़ने वाले को चौंकाती है. मुलाहिज़ा फ़रमाएँ ये दो रचनाएँ.

झूठा सब संसार

झूठा सब संसार
प्यारे
झूठा सब संसार

मोह का दरिया, लोभ की नैया
कामी खेवन हार
मौज के बल पर चल निकले थे
आन फंसे मझधार
प्यारे
झूठा सब संसार


तन के उजले , मन के मैले
धन की धुन असवार
ऊपर ऊपर राह बताएं
अंदर से बटमार
प्यारे
झूठा सब संसार


ज्ञान ध्यान के पत्तर बाजें
बेचे स्वर्ग उधार
ज्ञानी पात्र बन कर नाचे
नकद करें बयोपार
प्यारे
झूठा सब संसार


चोले धर के दीन धर्म के
निकले चोर चकार
इन चोलों की आड़ में चमके
दो धारी तलवार
प्यारे
झूठा सब संसार
प्यारे
झूठा सब संसार.

दर्शन दर्शन

दर्शन दर्शन मेरा
बस
दर्शन दर्शन मेरा

माली लाख करे रखवाली
भँवरा गूंजे डाली डाली
फूल फूल पर डेरा
बस दर्शन दर्शन मेरा

हर कोई है कैद क़फ़स में
बुलबुल रंग में
मक्खी रस में
जोगी वाला फेरा
बस दर्शन दर्शन मेरा

जिस हृदय में श्याम बिराजे
जिस गोकुल में मुरली बाजे
साधु करे बसेरा
बस दर्शन दर्शन मेरा

रंग रंग से जले जुआला
अंग अंग का रूप निराला
नयन जपे दर्शन की माला
साजे सांझ सवेरा
बस दर्शन दर्शन मेरा।

7 comments:

Yunus Khan said...

हैरत की बात है कि इन्‍हें अभी तक किसी ने गाया नहीं । क्‍यों क्‍यों क्‍यों ।
ठेठ भारतीय संस्‍कृति के रस में भीगी कविताएं ।
आनंद । परम आनंद ।

मैथिली गुप्त said...

संजय जी आपकी पेशकश बहुत बहुत पसंद आयी.
वाकई हफ़ीज़ साहब की शायरी का क्राफ़्ट और सादगी पढ़ने वाले को चौंकाती है.

Manish Kumar said...

तन के उजले , मन के मैले
धन की धुन असवार
ऊपर ऊपर राह बताएं
अंदर से बटमार
प्यारे
झूठा सब संसार
.................
हर कोई है कैद क़फ़स में
बुलबुल रंग में
मक्खी रस में
जोगी वाला फेरा
बस दर्शन दर्शन मेरा
..................
क्या बात है हुजूर! इन नगीनों को पेश करने के लिए धन्यवाद !

Udan Tashtari said...

बहुत आभार इसे पढ़वाने का. युनुस की बात से सहमत-न जाने क्यूँ किसी ने अब तक गाया नहीं इन्हें.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

हमेशा एक अछूता पहलू कला का पेश करने की कोशिश को सलाम !
ये गीत,
आसानी से गाया जा सकता है -
गँगा जमनी तहज़ीब की मिसाल सा है
-- लावण्या

Gyan Dutt Pandey said...

हाफिज जलन्धरी - हमें तो मालूम ही न थे। परिचय के लिये धन्यवाद।

ghughutibasuti said...

मैं भी इन्हें आज ही पढ़ रही हूँ। पढ़वाने के लिए धन्यवाद।
घुघूती बासूती