अभी पिछले महीने ही म.प्र.शासन द्वारा आयोजित आयोजित राज्य स्तरीय लता मंगेशकर सुगम संगीत प्रतियोगिता में शिरकत के लिये मुम्बई से संगीत जगत की तीन जानी मानी हस्तियाँ इन्दौर तशरीफ़ लाईं थीं.इनमें थे संगीतकार कुलदीप सिंह,शास्त्रीय संगीत की वरिष्ठ गायिका शुभा जोशी (सरदारी बेगम में जिन्होनें ठुमरी गाई है) और युवा गायिका संध्या काथवटे(शास्त्रीय,उप-शास्त्रीय गायिका और मुंबई में कई लेक्चर डिमाँस्ट्रेशन सत्रों की प्रस्तोता)
आमतौर पर संगीत प्रतियोगिताओं में निर्णायकों के सर इतनी भर ज़िम्मेदारी होती है कि वे गायक-गायिकाओं को सुनें और आख़िर में अंकों का गुणा-भाग कर विजेता घोषित कर दें.कार्यक्रम को एंकर करते हुए मेरे मन मे ख़याल आया कि प्रदेश की संगीत प्रतिभाओं के सम्मुख देश के गुणी संगीत-साधक बैठे हैं और इन्हें(प्रतिभागियों को) इनके अनुभवों का लाभ न मिला तो आयोजन की प्रासंगिकता कम हो जाएगी. मैने स्फ़ूर्त ही प्रतियोगियों की प्रस्तुति के बीच में गणमान्य निर्णायकों से कुछ प्रश्न पूछने शुरू कर दिये. तीनो जानकारों ने जो बाते बताईं वह लाजवाब थीं और किताबों और कक्षाओं में नहीं मिल सकतीं. सोचा कि क्यों न ब्लॉग-बिरादरी के ज़रिये इन बातों को सार्वजनिक किया जाए जिससे ये मशवरे गाने में रूचि रखने वालों के काम आ सकें. सनद रहे ये मशवरे गीत,ग़ज़ल और भजन विधा को ध्यान में रख कर ही दिये गए थे,फ़िल्म संगीत उक्त प्रतियोगिता में वर्जित है. मैने तीनो की बातों सार इस पोस्ट में समाहित किया है जिससे थोड़े में सारी बातों का ख़ुलासा हो सके.
हाँ ज़्यादातर टिप्पणियाँ कुलदीप सिंह के वक्तव्य का सार हैं.कुलदीप जी फ़िल्म दुनिया के जाने माने संगीतकार हैं और इन दिनों इप्टा मुंबई के सदर हैं.कुलदीप सिंह जी ने फ़िल्म जगत में कम काम किया है लेकिन बेहद सुरीला. आपको उनकी दो फ़िल्में तो ख़ासतौर पर याद होंगी...साथ साथ (इस फ़िल्म में कुलदीप सिंहजी ने ग़ज़ल गायक जगजीतसिंह को पहली बार बतौर पार्श्वगायक प्रस्तुत किया) और अंकुश.इन दो फ़िल्मों के तीन गीत बहुत मक़बूल हुए थे.. ये तेरा घर ये मेरा घर...तुमको देखा तो ये ख़याल आया और इतनी शक्ति हमें देना दाता , मन का विश्वास कमज़ोर हो ना(मैं इस प्रार्थना को वैश्विक प्रार्थना कहता हूँ)
कुलदीप जी ने नुक्कड़,सर्कस,इंतज़ार,और तारा जैसे एकाधिक धारावाहिकों में भी दिया है. वे वाक़ई संगीत सर्जक हैं ...समकालीन संगीत की धमाचौकड़ी में उनका मन नहीं लगता.वे अत्यंत सादा इंसान हैं और संगीत के गूढ़ जानकार हैं . वे श्याम-चौरासी घराने के चश्मे-चिराग़ हैं ग़ालिबनामा,शीशों का मसीहा (फ़ैज़ अहमद फ़ैज़) और कैफ़ी और मैं (कैफ़ी आज़मी)जैसी ड्रामा प्रस्तुतियों में भी संगीत रच चुके हैं हाँ यहाँ ये बताना मुनासिब होगा कि शीशों का मसीहा और कैफ़ी और मैं में शबाना
आज़मी और जावेद अख्तर साहब की भी शिरक़त है.
पढ़ने वालों की टिप्पणियों का स्वागत है. टिप्पणी मिलने से हौसला-अफ़ज़ाई होती है ;लेकिन एक गुज़ारिश है कि इस ख़ास पोस्ट पर टिप्पणी देने से ज़्यादा नेक काम ये होगा कि आप ये मशवरे उन लोगों तक पहुँचाएं जो सुगम संगीत गा रहे हैं या इस क्षेत्र में अपनी क़िस्मत आज़माना चाहते हैं.तो नोट कर लीजिये कुछ अनमोल टिप्स :
-ज़्यादातर बाल कलाकार अपने गुरू का रटवाया हुआ गाते हैं.गुरूजनों का दायित्व है कि वे इस बात का ख़ास ख़याल रखें कि क्या जो बच्चे को सिखाया जा रहा है वह उसकी उम्र पर फ़बता है.
-कविता/शायरी की समझ सबसे बड़ी चीज़ है.जब गा रहे हैं ’ रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिये आ’ तो ये जानना ज़रूरी है कि एहमद फ़राज़ ने इस ग़ज़ल में क्या कहा है. यदि कबीर गा रहे हैं तो जानें कि ’जो भजे हरि को सदा; वही परम-पद पाएगा,ये परम-पद क्या बला है. रचना का तत्व जानें बिना गायकी में भाव पैदा करना मुमकिन नहीं.
-वह गाइये जा आपकी आवाज़ को सूट हो , इसलिये कोई ग़ज़ल,गीत या भजन न गाएँ कि वह बहुत सुना जाता है. क्या आपकी आवाज़ से वह बात जाएगी जो कविता/शायरी में कही गई है.आपकी आवाज़ और रचना की जुगलबंदी अनिवार्य है.
-तलफ़्फ़ुज़...उच्चारण ...सुगम संगीत की जान हैं.भजन , ग़ज़ल और गीत ..ये सब शब्द प्रधान गायकी के हिस्से हैं . यदि शब्द ही साफ़ नहीं सुनाई दिया तो आपके गाने का मक़सद पूरा नहीं होगा.सुगम संगीत में रचना की पहली पंक्ति सुनते ही श्रोता तय कर लेता है कि उसे ये रचना या इस गायक को पूरा सुनना है या नहीं.संगीत गुरू यदि भाषा की सफ़ाई का जानकार न हो तो ऐसे किसे व्यक्ति से संपर्क बनाए रखना चाहिये जो उच्चारण की नज़ाकत को जानता हो.(इस मामले में मैं रफ़ी साहब और लता जी को उच्चारण का शब्दकोश मानता हूँ;नई आवाज़ों को चाहिये कि वे इन दो गायको के गाए गीतों के शब्दों को बहुत ध्यान से सुनें)
-सरल गाना ज़्यादा कठिन है. बड़े और नामचीन गायकों को सुनिये ज़रूर लेकिन फ़िज़ूल में उनकी आवाज़ की हरक़तों की नक़ल न करें. बात को सीधे सीधे कहिये .ज़्यादा घुमाव फ़िराव से शब्द प्रदूषित हो जाता है. जगजीतसिंह को सुनिये...कितना सादा गाते हैं .वे क्लासिकल पृष्ठभूमि से आए हैं लेकिन जानते हैं कि ग़ज़ल गायकी की क्या ख़ूबी है.वे अपनी आवाज़ को बहुत लाजवाब तरीक़े से घुमाना जानते हैं (यक़ीन न हो तो फ़िल्म आविष्कार में उनका और चित्रा सिंह का गाया बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जा ...सुनिये)लेकिन वे शब्द और सिर्फ़ शब्द का दामन ही नहीं छोड़ते.
-शास्त्रीय संगीत आधार है...यदि गाने के क्षेत्र में वाक़ई गंभीरता से आना चाहते हैं तो शास्त्रीय संगीत सीखे बिना क़ामयाबी संभव नहीं.
- देहभाषा (बॉडी लैंग्वेज) सहज रखिये...गले या शरीर के दीगर भागों पर गाने का तनाव मत लाईये...तसल्ली गाने की सबसे बड़ी चीज़ है. देखिये तो कभी मेहंदी हसन साहब को गाते हुए...कितनी शांति से सुर छेड़ते हैं...बल्कि उससे खेलते हैं...उसमें रम जाते हैं....गाते वक़्त गाने वाला ख़ुद अपने भीतर बैठे कवि को प्रकट कर दे यानी किसी रचना को ऐसे गाए जैसे वह उसी की लिखी है और यहाँ फ़िर वही बात लागू हो जाती कि कविता/शायरी की समझ के बिना ये संभव नहीं.
- सुनना और सुनना ...नई आवाज़ों को अपने क्षेत्र की (जिस भी विधा आप गाते हैं)पूर्ववर्ती वरिष्ठ कलाकारों की रेकॉर्डिंग्स सुनिये.अपने पसंदीदा गुलूकार का कलेक्शन सहेजिये..समझिये कैसे गाते रहे हैं ये बड़े कलाकार..सुनिये...गुनिये...और फ़िर गाइये.
विभिन्न विधाओं में इन आवाज़ों ज़रूर सुनें:
- नक़ल बड़ी ख़तरनाक़ चीज़ है...मत पड़िये इस उलझन में ..जब जब भी आप किसी अन्य गायक को दोहराएंगे..वही कलाकार याद आएंगे (जिसको आप दोहरा रहे हैं या नक़ल कर रहे हैं) आप स्थापित नहीं हो पाएंगे.भगवान ने आपके गले में जो दिया है उसे निखारिये.
-अच्छा कलाकार बनने से पहले अच्छा इंसान बनिये और शऊर पैदा कीजिये ज़िन्दगी की अच्छी बातों को अपनाने का. गाते हैं तो साहित्य पढ़ने में कविता / शायरी सुनने,चित्रकला में रूचि लेने,अभिनय में, यानी दूसरी विधाओं से राब्ता रखने से आप बेहतर कलाकार बन सकते हैं
ये बातें नई आवाज़ों के लिये निश्चित ही काम की हैं .इन बातों में मैने कुलदीप सिंह जी के अलावा अपनी थोड़ी बहुत अक़्ल का इस्तेमाल भी किया है.
उम्मीद है इन बातों में दी गई नसीहतें और मशवरे भजन,गीत और ग़ज़ल गाने वाले नए कलाकारों के लिये बहुमूल्य साबित होंगे.आमीन.
6 comments:
jagjeet paaaaji ka nam padkar chala aaya...
वैसे संगीत से मेरा वास्ता सुनने तक ही है... लेकिन संगीत सीखने वालों के लिए वाकई महत्वपूर्ण और उपयोगी सीख है.
बहुत उम्दा मशवरें हैं. निश्चित ही संगीत गायन मे रुचि रखने वालों तक पहुँचाने का प्रयास करुँगा.
आपकी सलाह, मार्के की है -
सँगीत सीखनेवालोँ के लिये
बडे काम की टीप्स हैँ -
- लावण्या
अभी अभी शायद पांचवीं बार पढ़ी आपकी यह पोस्ट. गागर में सागर जैसा घिसा पिटा मुहाविरा इस्तेमाल नहीं करूंगा. बस यही कि यह एक अमूल्य पोस्ट है. बाकायदा संजो ली गई है और भविष्य में इसकी सलाहों को अधिक से अधिक युवाओं तक पहुंचाया जाएगा, संजय भाई!
भाई साहब, अभी बस कुलदीप सिंह जी से मिलकर ही प्रेस आ रहा हूं, वे यहां स्थानीय इप्टा द्वारा आयोजित 13वें राष्ट्रीय मुक्तिबोध नाटय समारोह के उद्घाटन करने आए हैं। बस यह खबर बनाकर जा रहा हूं उद्घाटन समारोह में।
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