Sunday, June 15, 2008

फ़ादर्स डे....नई पीढ़ी में बीतती पीढ़ी का अक्स देखना बेमानी होगा न ?



उनकी मौजूदगी और आवाज़ से ही
धूजनी चल जाती थी.
उनका आदेश यानी पत्थर की लकीर
उनसे ज़्यादा जानकारी किसी और को हो ही नहीं सकती थी.
वे थे एक स्कूल
एक संस्था...
तहज़ीब,संगीत,भूगोल और न जाने कितनी
औषधियों के
वे नाम के पिता नहीं थे
उनके ठसके और रूतबे में झलकता था
पिता का आभामंडल
वे मेरे पिता के पिता थे.
मैने अपने पिता को उनके सामने
सोते नहीं देखा
हमेशा चाक-चौबंद
अपने पिता की बात को ध्यान से सुनते पाया.

समय बदला
मैं बड़ा होने लगा
अपने पिता से तो रहा पहले सहमा-सहमा
उनके आग्रह को आदेश मानता सा
उन्होंने कह दिया सो कह दिया
हिम्मत नहीं हुई
समय के अनुशासन को तोड़ने की
कह दिया इतनी बजे लौटूंगा...आ गया

कभी जूते ख़रीदना चाहा तो जवाब मिला
दशहरे पर दिलवाएँगे...ख़ुश हो गया
चलो त्योहार मज़े से मनाएंगे.

फ़िर किशोर से जवान हुआ
अपना मत और मन बनाने लगा
लेकिन व्यक्त करने में थोड़ा डरा डरा सा.
फ़िर भी उनसे थोड़ी आज़ादी तो ले ही ली
कामकाज की,अपनी तरह से रहने की
उनसे सीखा ज़माने का दस्तूर
कैसे सम्हालो अपने आपको
बचाओ पैसे,मत करो फ़िज़ूलख़र्ची
उन्होंने सिखाया सुनने, बोलने,लिखने का सलीक़ा
उनकी नसीहतों और मशवरे से आबाद है मेरी ज़िन्दगी


फ़िर मेरी शादी हो गई
अब मैं दो बच्चों का बाप हूँ..
अब इस बदले समय की व्यथा - कथा भी सुन लें
मेरा बेटा बड़ा हो गया है
कभी ठिठोली करता
कभी बेपरवाह होकर अपनी फ़रमाईश करता
जब-तब अपनी माँ से पैसे लेकर ख़रीद लाता है
जूते,कपड़े,गॉगल्स,बेल्ट,कैप, आईपॉड और मोबाईल
उसे नहीं चाहिये प्रेमचंद का गोदान,नागर का मानस का हँस
और शिवाजी सावंत का मृत्युंजय
नहीं चाहिये उसे गंडेरियाँ,गर्म मूँगफ़ली या सिके भुट्टे
नहीं चाहिये उसे ओंकारनाथ ठाकुर,गिरजा देवी,रसूलन बाई,
ज्युथिका राय,पंकज मलिक,सहगल,सुरैया
की आवाज़ जिन पर मेरा दिल क़ुरबान रहता है
वह अपनी बर्गर,पित्ज़ा और डिस्को थैक की दुनिया में
बहुत ख़ुश रहता है


वह आग्रह नहीं करता
आदेश ही करता है
कब आता है
कब जाता है
मुझे मालूम नहीं
उसके दोस्त कौन हैं
क्या करते हैं...
पूछो तो कह कर निकल जाएगा
.....मिलवा दूंगा किसी दिन आपको डैड.
डोंट वरी
लेकिन मैं बेबस सा नहीं
इन सब बातों को ख़ुशी ख़ुशी सहने और सुनने का आदी हो गया हूँ
ज़माना जो बदल गया है....मुझे भी बदलना होगा.

एक बड़ा फ़र्क़ और आया है
मैं इम्तिहान देने जाता था तो
पिता के पैर छूकर जाता था


मेरा बेटा
मुझसे गले मिल कर कहता है
बाय डैड


मुझे लगता है सब ठीक ही हो रहा है
मेरा,उसके दादा और परदादा के
समय का अक्स अपने बेटे में देखना
शायद ग़लत ही होगा न ?
(तस्वीर में साहबज़ादे ही हैं मेरे साथ)

20 comments:

मीनाक्षी said...

संजय भाई पहले तो आपके बेटे को खूब सारा प्यार और आशीर्वाद... अब आती पुरानी जीवन धरा से नए की ओर .... समय के साथ नदियों ने रुख बदल लिए तो जीवन धारा भी तो वैसे ही बदलती रहेगी....कविता में... दादा और पापा फ़िर ख़ुद पापा.... की सुंदर अभिव्यक्ति है..

Gyan Dutt Pandey said...

सब कुछ बदलता है और सब कुछ वही रहता है!

विष्णु बैरागी said...

श्री विजय वाते के शेर की पंक्ति है -

'बात मेरी थी, तुम्‍हें अपनी लगी, अच्‍छा लगा'

लिखी आपने लेकिन सब कुछ मेरे मन की है । शुक्रिया । हां, आपका बेटा आपसे ज्‍यादा सुन्‍दर है । आज उसकी नजर उतारिएगा ।

डॉ .अनुराग said...

कभी लिखा था ...
मैं सोचता था दौड़ के पकड़ लूँगा .....
वक़्त है मगर ठहरता नही....

यही जिंदगी है साहब....पर आपका लिखा दिल मे उतर गया....
god bless you.

samagam rangmandal said...

संक्रमण है।पुत्र का पिता हो जाना,चक्र है,गोल और अनवरत।बढिया पोस्ट।आभार।

पारुल "पुखराज" said...

samay ke saath khud ko badal lena aavashyak hai varna ek mod tak aatey aatey insaan akela rah jata hai-chitr v post mun bhayi sanjay bhayi

दिलीप कवठेकर said...

Sanjoo,

Kya baat hai!!

Yeh ek Maha Kavya hai.
Man ke bhavon ki soonder si abhivyakti!
Chahat aur yatharth ka antardwand !!
Peedhiyan ka vikaswad ya adhigatiwad?

Magar shayad, tumhare sahabzade yu nahi honge, tum par aur Renu ke sanskaron ka kuchh to paas rakha hi hoiga, rakhega bhi. Yaa phir man ki yah ghabarahat ya darnaa , aashanka ka Poorvaabhass ya PRETHOUGHT hai?

Jo bhi hai, tum taiyar ho , is duniya ko iske badalte swaroop mai zelne ko. Yeh duniya phir bhi sunder hi hogi, kyoki tumhara antarman sunder hai.

Man Changa to kathouti me Ganga!!

Likhte rahna.

दिलीप कवठेकर said...

ADHOGATIwad(in place of Adhigatiwad)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सँजय भाई ,
साहबजादे को ढेरोँ आशीर्वाद और प्यार -पापा का नाम रोशन करेँगेँ वो भी, देख लेना !
इसे कह्ते हैँ हिन्दी ब्लोग जगत का वैश्विक प्रदान --
& "Don't worry, Be Happy "
( this is a song :)
- लावण्या

sanjay patel said...
This comment has been removed by the author.
sanjay patel said...

आप सभी के प्रतिसाद को नमन करता हूँ.जिस तरह की ज़िन्दगी है मेरी अस्त-व्यस्त उसी तरह से इस भावना को नज़्म की शक्ल मिल गई अपने आप. जीवन को यथार्थ में लेना ही हमारे समय की विवशता है. पुत्र पार्थ को मिला आप सभी का प्यार और आशीर्वाद रोमांचित कर गया. मैने उसे बताया भी कि दुनिया भर से तुम्हें दुआएँ मिली हैं ..सौभाग्यशाली हो तुम.पिताजी को भी सुनाया ये शब्द चित्र ; वे विष्णु जी और उनके अग्रज बालकविजी की पीढ़ी के हैं सो उनका कहना है कि मेरा हर एक पल पिता की सीख के प्रति ऋणी रहता है और हर लम्हा मैं अपने पुत्र-पौत्र के लिये शुभकामनाओं से भरा रहता हूँ अत: इन भावनाओं को किसी ख़ास दिन व्यक्त करने की ज़रूरत महसूस नहीं करता मै.
बहरहाल...फ़िर एक बार शुक्रिया आप सब का.

अनूप शुक्ल said...

शानदार पोस्ट। जोड़ी सलामत रहे पिता-पुत्र की।

mamta said...

संजय जी आपको और आपके बेटे को फादर्स डे की शुभकामनाएं।
हर पीढ़ी मे कुछ ना कुछ बदलाव आ ही जाता है ।

Unknown said...

Sanjay Bhai,
Your poem is true insight to the relationship between father and son in today's world.The older generation needs to be adjusting and tolerant and treat their children like friends in the true sense.This way the generation gap gets reduced if any exist. I enjoy being my children's best friend.
Sangeeta Agarwal

pramod said...

सबका अपना सा सच - बेहतरीन लेखन

प्रमोद व्यास

pramod said...

सब कुछ अपना अपना सा - बेहतरीन लेखन

Shalin Sarwad said...

Very Interesting ..Ek aisa Chubhan dene wala Satya jise aapne bakhubi apni bhavnatmak shabd prayog shaili se madhur ahsaas karane wala bana diya..Samajh aa gaya hai ke bite hue kal se prerna le aur aane wale kal ko khule dil se sweekar kare. Gyaan bodh ke liye aapka shukriya..

shabdnidhi said...

आपके अनुभव के शब्दों की माला तो मुक्ताहार बन कर कविता का श्रंगार कर रही है. फादर्स डे पर आपको बहुत सी शुभकामनाये.

आज शाम को माँ का फोन आया कि बेटा कैसी हे? मैं समझ गई थी कि मम्मी मेरे फोन का ही इन्तजार कर रही है जो हर बार अलसुबह ही पिताजी के पास पहुँच जाया करता था .पर न वो कुछ कह सकी न मैं .दोनों ही पिताजी कि कमी को सिर्फ महसूस कर रहे थे.एक अनकही सा दर्द दोनों ने समझ लिया (औरसब बढ़िया हे का जुमला कह कर ) फोन रख दिया.

सागर नाहर said...

फेस बुक पर नीरज दीवान के स्टेट्स पर उनके मित्र संदीप कोहली ने संदेश टाइप किय था, उसे यहाँ पेस्ट कर रहा हूँ।
हैप्पी फादर्स डे
मैं और मेरे पिता

जब मैं 3 वर्ष का था तब मैं यह सोचता था की मेरे पिता दुनिया के सबसे मजबूत और ताकतवर इंसान हैं|
जब मैं 6 वर्ष का हुआ तब मैंने महसूस किया की मेरे पिता दुनिया के सबसे ताकतवर ही नहीं सबसे समझदार इंसान भी हैं|
जब मैं 9 वर्ष का हुआ तब मैंने यह महसूस किया की मेरे पिता को दुनिया की हर चीज़ के बारे में ज्ञान है।
जब मैं 12 वर्ष का हुआ तब मैंने यह महसूस करने लगा की मेरे दोस्तों के पिता मेरे पिता से ज्यादा समझदार हैं।
जब मैं 15 वर्ष का हुआ तब मैंने यह महसूस किया की मेरे पिता को दुनिया के साथ चलने के लिए कुछ और ज्ञान की ज़रूरत है।
जब मैं 20 वर्ष का हुआ तब मुझे यह महसूस हुआ की मेरे पिता किसी सुर ही दुनिया के हैं और यह मेरी सोच के साथ नहीं चल सकते।
जब मैं 25 वर्ष का हुआ तब मैंने यह महसूस किया की मुझे किसी भी काम के बारे में अपने पिता से सलाह नहीं करनी चाहिए क्योंकि उन्हें हर काम में कमी निकलने की आदत सी पड़ गयी है।
जब मैं 30 वर्ष का हुआ तब मैं यह महसूस करने लगा की मेरे पिता को मेरी नक़ल करने से कुछ समझ आ गयी है।
जब मैं 35 वर्ष का हुआ तब मुझे लगा की छोटी मोती बातों में उनसे सलाह ली जा सकती है।
जब मैं 40 वर्ष का हुआ तब मैंने यह महसूस किया की कुछ ज़रूरी बातों में सलाह लेनी चाहिए।
जब मैं 50 वर्ष का हुआ तब मैंने यह फैसला किया की अपने पिता की सलाह के बिना कुछ नहीं करना चाहिए क्योंकि मुझे यह ज्ञान हो चूका है की मेरे पिता दुनिया के सबसे समझदार व्यक्ति हैं पर इससे पहले मैं यह समझ पाता और अपने फैसले पर अमल कर पाता मेरे पिता जी इस संसार को अलविदा कह गए और मैं अपने पिता की हर सलाह और तजुरबे से वंचित रह गया और तब तक मेरा बेटा भी 25 वर्ष का हो गया था.

Bhavana Newaskar said...

sahi likha aapne waise bhi parivartan sansar ka niyam he hame hi change ke sath chalna hoga jyada umeede ya jyada tulna karna thik nahi. bas kaise bhi rahe aane wali pithi par prem aor insaniyat ko kayam rakhe. to fir baki sab chalega.