Saturday, June 21, 2008

सुरीलेपन को आमंत्रित करने का दिन है आज !


आज विश्व संगीत दिवस है , बधाई आप सब को।
कामना करता हूँ कि आपकी ज़िन्दगी हर पल सुरीली हो।
लेकिन एक प्रश्न भी आता है मन में कि क्या वाक़ई हमारे
इर्द-गिर्द ऐसे हालात हैं जिन्हें सुरीला कहा जा सके ।जहाँ से
सुर झरना चाहिये वहीं हालत ख़राब है;मेरा इशारा फ़िल्म संगीत
की ओर है जो बरसों से आम आदमी को आनंदित करता आया है।
अब कुछ अपवादों को छोड़ दें तो समकालीन फ़िल्म संगीत से
सुरीलेपन की जुगलबंदी ख़त्म सी होती जा रही है। ए आर रहमान,
शंकर अहसान लॉय,विशाल भारद्वाज और शांतनु मोइत्रा को अपवाद मान लिया जाए,
तो बाक़ी सारे संगीतकार तो शोर ही परोस रहे हैं।

लोग कहते हैं कि जैसा दुनिया चाहती है वैसा ही माल परोसा जाता है।
लेकिन ये बात तो उन लोगों पर लागू होती है जो संगीत को माल और
अपने काम को दुकानदारी मानते हैं। हमने पंकज मलिक,आर सी बोराल,
से लेकर पं रविशंकर तक का कारनामा फ़िल्म दुनिया में देखा - सुना है
और पाया है कि ये सब महान सर्जक अपनी शर्तों पर संगीत बनाते रहे
और ज़माना उनकी रचनाओं को सराहता आया है आज तक।बीच के दौर
के स्वर-रचनाकारों के नाम लेकर मैं आपका क़ीमती वक़्त ज़ाया नहीं करना
चाहता…आप सभी उन नामों के क़ायल हैं और उनका संगीत सुनते,सहेजते
और सराहते हैं।

आज विश्व संगीत दिवस पर दो तीन गुज़ारिश करना चाहता हूँ आपसे…

-समय आ रहा है कि अपने परिवार की नई पीढ़ी को भारतीय शास्त्रीय
संगीत के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी से अवगत करवाएं।

-संभव हो तो (ख़र्चीला सुझाव जो है) अपने संकलन में आठ दस
एलबम्स क्लासिकल म्युज़िक के भी रखें। ज़्यादा हो सकें तो वाह ! क्या बात है।

-शादी – ब्याह में मित्रों और सहकर्मियों को सौ या दो सौ रूपये का लिफ़ाफ़ा
देने की जगह संगीत कैसैट्स और सीडीज़ को भेंट करने का संकल्प लें।

-जो लोग शिक्षण विधा से जुडे हैं वे अपने स्कूलों या कालेजों के कार्यक्रमों
में फ़िल्मी धुनों पर होने वाले एक्शन डांस प्रस्तुतियों के स्थान पर लोक-संगीत
या शास्त्रीय संगीत को प्रोत्साहित करें।

-अपने पारिवारिक आयोजनों में भी (जैसे विवाह के अवसर पर मंगल संगीत) कोशिश
करें कि अपने घर परिवार , परिवेश,बोली का संगीत बजे,यानी लोक-संगीत।

-परिवेश को सुरीला बनाने में गुज़रे ज़माने का संगीत एक बहुत बडी अमानत है।
पचास से लेकर सत्तर तक संगीत सुनना एक अनुभव है।सुनिये और अपने
दफ़्तर और बच्चों के बीच भी बजाइये।

-नई पीढी को पुराने और शास्त्रीय संगीत की ओर लाने के लिये हमें भी उनकी पसंद
के संगीत की ओर जाना पड़ेगा…वहाँ भी कुछ सुरीलापन मौजूद है…उसका आनंद
लीजिये…आपकी इस पहल नई पीढी भी आपकी पसंद के संगीत की ओर आएगी,
मुझे पूरा विश्वास है।

तो आइये…कामना करें कि हम अपने आसपास अपनी हर संभव कोशिशों से सुरीलापन फ़ैलाए। यदि समय मिले तो आज अपने परिवार की नई पीढी के साथ बैठकर कुछ मीठी संगीत रचनाओं का रसपान कीजिये । शुरूआत के लिये यह दिन शुभ है लेकिन संगीत तो ऐसी चीज़ है जो किसी मुहूर्त,दिन,और समय-क्रमका मोहताज नहीं है।

11 comments:

Arun Arora said...

वाकई अगर ऐसा हो जाये तो एक अच्छी शुरूआत होगी

रंजू भाटिया said...

अच्छी जानकारी दी आपने .संगीत है तो जीवन है यह मानना है मेरा शुक्रिया

Ashok Pande said...

संजय भाई, बहुत सारी चीज़ें जीवन में काश बन कर रह जाती हैं ... बहुत नज़दीक और सहज उपलब्ध होने के बावजूद. हम थोड़ा सा भी प्रयास नहीं करते और जीवन भर 'काश ऐसा होता' कहते कहते आखि़रकार 'यूं होता तो क्या होता' वाली मानसिकता में पहुंचकर टें बोल जाते हैं.

हमारे यहां संगीत की दुर्गति के लिये हम लोग स्वयं ज़िम्मेदार हैं.

आपके सुझाव बहुत ज़रूरी और प्रासंगिक हैं. शुक्रिया एक अच्छी बात साझा करने का. और आपका तो हर दिन ही विश्व संगीत दिवस होता है.

शुभ!

शायदा said...

संजय भाई बहुत सुरीली पोस्‍ट रही ये तो। आपके सुझाव बहुत अच्‍छे हैं और इनपर अमल करना मुश्किल भी नहीं बस ज़रा सी सोच की ज़रूरत है।

nitin said...

suravat kare aaj se sat suro ke liye saptha ke sato din kuch samay jarur nikale sambhav ho sake to subha keva sastriya sangeet ka anand ke
shukriya
nitin

Gyan Dutt Pandey said...

विश्व संगीत दिवस पर मुझ सा सगीत में निरक्षर यही कह सकता है कि कुछ यत्न करेगा समझने का!

नीरज गोस्वामी said...

संजय जी
जिसने एक बार शास्त्रीय संगीत का आनंद जान लिया समझिये उसने जीवन का रस पा लिया. आप के सुझाव बहुत अच्छे हैं और यकीनन माने जाने चाहियें. संगीत से जुड़ने के बाद इंसान में छुपा हैवान ख़ुद ही रुखसत हो जाता है.
नीरज

Unknown said...

संजय जी,
आपके ब्लॉग का पता यूनुस के ब्लॉग से मिला था और तब से नियमित पढा जाता है |
आज का आलेख विशेष प्रेरणादायक है |
आपके तीसरे सुझाव (लोक संगीत को कार्यक्रमों में स्थान देना ) का कार्यान्वन यहाँ न्यू जर्सी में हमारे उत्तरांचली कार्यक्रम में जब होता है , तो मन प्रसन्न हो जाता है|
पचास से सत्तर का संगीत हमारे घर और कार में खूब बजता है|
रही बात शास्त्रीय संगीत, बच्चों को सुनवाने की, तो वह ज़रा मुश्किल प्रतीत होता है पर असम्भव कदापि नही | मेरा बेटा जब वेस्टर्न शास्त्रीय संगीत बजाता, सुनता और माँ के ज़माने का संगीत सुन सकता है तो भारतीय शास्त्रीय क्यों नहीं !!
बहुत धन्यवाद और संगीत दिवस पर शुभेच्छा |

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

विश्व सँगीत दिवस पर सही और सच्ची बातेँ सुझाने के लिये आपका आभार -
सँगीत ना हो तब तो जीवन निरस हो जाये ..
स स्नेह्,
-लावण्या

sanjay patel said...

शुक्रिया आप सभी का.
आपके प्रतिसाद से तय है कि दुनिया के हर
कोने में भारतीय संगीत की सुध लेने वाले
सुर-सुजान रहते हैं.
मुझे लगता है कि ये भी एक दौर है जब संगीत को अपने उस पते पर पहुँचना है जहाँ वह चाहा जाता रहा है. सराहा जाता रहा.सीखा जाता रहा और गाया-सुना जाता रहा है. समय चक्र हम सब की भावनाओं का मान करेगा...मुझे पूरा यक़ीन है.
फिर से साधुवाद आप सभी का.
सुर का मान बना रहे

मीनाक्षी said...

संजय जी, हमारे यहाँ तो संगीत को दर्द निवारक दवा के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है...
नीरज जी की बात से हम भी पूरी तरह से सहमत हैं. we follow 'give and take' policy...आज के संगीत का आनन्द लेते है और पुराने के लिए बच्चों में मोह पैदा करने की कोशिश करते हैं.