Thursday, June 5, 2008

चला गया एक और पर्यावरण दिवस ?

चलो कल से शुरू हो जाओ
काटो पेड़ बेतहाशा
करो वृक्षारोपण का तमाशा
घर में पानी ढोलो अपार
धोए जाओ कार
तो चार एस.एम.एस भेजो
एक आध कार्यक्रम में चले जाओ
निसर्ग पर बोलो,बतियाओ
करो शोर
अपनी फ़ेक्ट्री से प्रदूषण फ़ैलाओ
सड़क के पार दस बीस ट्री गार्ड लगाओ
रैली निकालो,दौड़ लगाओ
अख़बारों में पर्यावरण-प्रेमी बन तस्वीर छपवाओ

मज़े लो यार ज़िन्दगी के
ये पर्यावरण दिवस तो आएगा जाएगा
मौन रहने वाली प्रकृति कहाँ कुछ कहने वाली है
उसकी तबियत तो तुम्हारी क्रूरता को सहने वाली है
करो अपनी मनमर्ज़ी...लीलते जाओ ...लीलते जाओ

लेकिन ख़बरदार !
जब क़ुदरत बोलेगी
अपनी ज़ुबान खोलेगी
उसके बोलने में नहीं होगी आवाज़
कर देगी तुमको तबाह
निकालेगी दिल से आह
तुम स्तब्ध रह जाओगे,कहोगे
प्रकृति माँ ऐसी बेरहम कब से ?
उसकी ख़ामोशी से ही जवाब आएगा
तुम्हे आईना दिखाएगा
महसूस करोगे तुम
कि कुदरत की बेरहमी
का इल्ज़ाम तुम्हारे ही सर जाता है
तुमने किया है इसे बरबाद
धरती को रखा नहीं रहने के क़ाबिल
उड़ा दी इसकी धज्जियाँ
इंसान तुम्हारा जुर्म सज़ा मांगता है
हो जाओ तैयार
वह धमका नहीं रही है
बस ख़बरदार कर रही है
क़ीमत तो चुकानी पड़ेगी
बिला शक !
अब सिर्फ़ इतना हो सकता है
जितने दिन भगवान ने तुम्हारे खाते में लिखे हैं
उन्हें सुधार लो...बन जाओ प्रकृति के अपने
शायद तुम्हारा अगला जनम सुधर सके
अभी तो कोई उम्मीद बाक़ी नहीं
जिन्हें नहीं जचती यह बात
सो जाएँ वे लगा कर एसी
कट गया दिन
हो गई रात
इस प्रवचन का अर्थ ……
अनर्थ…
फ़िर कभी देखा जाएगा
आज तो पर्यावरण दिवस गया

4 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत मर्म छिपा है इस रचना में. पर्यावरण के प्रति जागरुकता सबमें आनी ही होगी. बहुत उम्दा रचना इस दिवस विशेष पर, आभार.

बालकिशन said...

अभी भी हम मानव नही चेते तो शायद देर हो जाए.
प्रकृति के साथ ये छेड़-छाड़ बहुत महंगी पड़ेगी हमे.
सबको भुगतना होगा (भुगत भी रहें है) प्रकृति का प्रकोप.
एक अच्छी रचना के माध्यम से आपने ये समझाया.

Gyan Dutt Pandey said...

रस्म अदायगी और वास्तविक पर्यावरण प्रेम का अन्तर समझा गयी यह पोस्ट।
और यही सच है।

Kirtish Bhatt said...

पर्यावरण को लेकर बस चोचले - ढकोसले ही होते हैं..... इंदौर इसका एक उदाहरण है.