भारत रत्न लता मंगेशकर दुनिया की सबसे सुरीली आवाज़ हैं. कुदरत ने उन्हे जिस तरह का हुनर अता किया है ; सोचकर , सुनकर और देखकर हैरत होती है. बिला शक उन्होने इस हुनर को अपनी कारीगरी से निखारा और सँवारा भी है.28 सितम्बर को उनका जन्म दिन है और हर साल उनके सम्मान में काफ़ी कुछ बोला और लिखा जाता है. मैं आज ब्लॉगर बिरादरी की ओर से लताजी के सम्मान में एक अदभुत कविता सहेज लाया हूँ. इसे लिखा है देश की सुविख्यात और वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती माया गोविंद ने. मायाजी के क़लम का जादू भी देखिये किस ख़ूबसूरती से उन्होने इस कविता में शब्दों के रूपक गढ़े हैं.कविता का हर बंद संगीतमय शब्दों से थिरकता सुरभित होता सुनाई दे रहा हो जैसे.
आइये लताजी के चिरायु होने की कामना के साथ इस सर्वकालिक महान गुलूकारा को ये शब्द - गुलदस्ता भेंट करें
तुम स्वर हो, तुम स्वर का स्वर हो
सरल - सहज हो पर दुश्कर हो
हो प्रात: की सरस भैरवी
तुम बिहाग का निर्झर हो
चरण तुम्हारे मंद्र सप्तकी
मध्य सप्तकी उर तेरा
मस्तक तार - स्वरों में झंकृत
गौरवांन्वित देश मेरा
तुमसे जीवन , जीवन पाये
तुम्ही सत्य-शिव-सुंदर हो
मेघ-मल्हार केश में बाँधे
भृकुटी ज्यों केदार सारंग
नयन फ़ागुनी काफ़ी डोले
अधर बसंत-बहार सुसंग
कंठ शारदा की वीणा सा
सप्त स्वरों का सागर हो
सोलह कला पूर्ण गांधर्वी
लगती हो त्रिताल जेसी
दोनों कर जैसे दो ताली
सम जैसा है भाल साखी
माथे की बिंदिया ख़ाली सी
दुत लय हो गति मंथर हो
राग मित्र रागिनियाँ सखियाँ
ध्रुपद धमार तेरे संबंधी
ख़्याल तराने तेरे सहोदर
तान तेरी बहनें बहुरंगी
भजन पिता जननी गीतांजली
बस स्वर ही तेरा वर हो
ये संसार वृक्ष श्रुतियों का
तुम सरगम की लता सरीखी
कोमल शुध्द तीव्र पुष्पों सी
छंद डोर में स्वर माला सी
तेरे गान वंदना जैसे
ईश्वर में ज्यों ईश्वर हो
इस कविता पर अपनी प्रशंसाएँ ज़रूर भेजियेगा. मायाजी आजकल अस्वस्थ रहतीं सो आपकी प्रतिक्रियाएँ उन्हें बहुत आनंदित करेंगी. आपकी टिप्पणियाँ हिन्दी मंच की इस गरिमामयी काव्य हस्ताक्षर तक ज़रूर पहुँचाउंगा.आपका प्रतिसाद हमारी लता दीदी (इन्दौर उनकी जन्म-स्थली है सो उन्हें दीदी कहने का हक़ तो बनता ही है हमारा) के लिये दीर्घायु होने का भाव तो बनेगा ही. क्या ये हमारा भी सौभाग्य नहीं कि हम उस कालखंड में जी रहे हैं जिसमे स्वर-कोकिला लता मंगेशकर ने जन्म लिया है.
शब्दों के विलक्षण जादूगर और ख़ाकसार के उस्ताद श्री अजातशत्रुजी के वक्तव्य से इस प्रविष्टि को विराम देते हूँ...इसे पढ़े...गुने...और कल दिन भर प्रकृति के सबसे पवित्र स्वर को कानों के आसपास ही रखें और देखें दिन कितना सुखमय गुज़रता है.....
ओ लता के गवाहों ! गंगा के नीर सा निर्मल स्वर , मोगरे के फ़ूलों सी ताज़गी आने वाली सदियों को भला कहाँ नसीब होगी.ध्यान रखना क़ुदरत ने लता की टेर फ़िल्मों के लिये,निर्माता के नोटों के लिये,पात्र या सिचुएशन के लिये नहीं....ज़माने को राहत बख्शने के लिये बनाई है.जब तक टिमटिमाते तारों की रात होगी,झील की हवाओं में उदास गुमसुमी रहेगी,बादलों के पीछे चाँद धुंधलाता रहेगा,चिर-किशोरी लता की निष्पाप आवाज़ हम पर सुखभरी बदली बरसाती रहेगी.आमीन.
15 comments:
just read your BLOG posting on Our aadarniya Didi ( LM )
indore mei janm liya aur Bharat Kokila Latadi , aaj Vishwa Sangeet
ke falak per jagmagata DHRUV Tarak bun ker chamak raheen hain.
Maya ji ki Kavita ne saari Raag ~ Raaginiyon ko gunth ker, apnee
Kavita rupi guldasta Didi ko saprem arpan kiya hai jo behad khoobsurat hai ...aur Ajatshatru jee ki Bhaavpoorna bhasha padhker
Latadidi ke prati prem ka aaveg aur badh jata hai.
Dhanyawaad ~~
Sadar, Sa ~ sneh,
Lavanya
वाकई, सुरों की देवी लता जी के लिए शब्द-पुष्पों की यह माला उनके जन्मदिन पर एक सुन्दर उपहार की तरह है।
28 सितम्बर को शहीद भगत सिंह का जन्मदिन भी है और इस अवसर पर यदि लता जी द्वारा गाए प्रसिद्ध गीत, ऐ मेरे वतन के लोगों.....जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी, को सुना जाए और उस पीड़ा और प्रेरणा को अपने भीतर महसूस किया जाए तो इस अवसर को और भी महत्वपूर्ण बनाया जा सकता है।
लता जी जन्म दिन पर एक उत्कृष्ट उपहार. बहुत सुन्दर. हमारी ओर से भी बधाई एवं शुभकामनायें.
संजय जी मैं बता नहीं सकता आपकी कविता मुझे कितनी पसंद आई । मेरे लिये लता मंगेशकर की आवाज ही जीवन है । मैंने अपने लेख में कही लिखा था कि मुझसे किसी ने पूछा था, कि जिदंगी और मृत्यु को अपने लिये कैसा चाहोगे ? मैंने कहा था , कि शरद पूर्णिमा की रात में, सुनसान पहाड़ पर मैं बैठा होऊँ, और चांद पर एक कैसेट रिकार्डर रखा हो, और वहां से लता जी का गाना बजने की, धीमी धीमी आवाज आ रही हो नीला आसमां सो गया, ये मेरे लिये जि+ंदगी है। और मृत्यु में, मैं जिसे सबसे ज्यादा प्यार करता हूँ, उसकी गोद में मेरा सर हो, धीरे धीरे सांसे बन्द हो रही हों, नब्ज रूक रही हो, और दूर से हल्की-हल्की लता जी की आवाज आ रही हो कभी तो मिलेगी, कहीं तो मिलेगी, बहारो ंकी मंजिल राही।
बधाई आपको
कविता वाकई में काफ़ी अच्छी बन पड़ी है। माया जी को धन्यवाद और आपको भी… हमको यह कविता पहुँचाने के लिये वो भी लता जी को समर्पित इतनी भावपूर्ण भूमिका के साथ।
परन्तु ना जाने क्यों, मुझे ऐसा लगता है कि कुछ प्रतिक्रियायें लोग कभी कभी इस प्रकार देते हैं जैसे उन्होंने लता जी को चुका हुआ मान लिया हो और वो उनको बीता हुआ मान कर स्मरण करने भर की औपचारिकता कर रहे हों (अन्यथा ना लें, ऐसा मैं आपके इस लेख और माया जी की कविता के बारे में हरगिज़ नहीं कह रहा, कविता तो सच में सुन्दर है)।
क्या करूँ, लता जी का इतना बड़ा प्रशंसक हूँ कि ऐसी प्रतिक्रियायें दिल को दुखाती हैं। आपके लेख से सकून मिला। भारत की नहीं, किसी भाषा विशेष की नहीं, समूचे संगीत की परिभाषा हैं लता जी।
माया जी को अच्छे स्वास्थ्य के लिये शुभकामनायें।
बहुत सुंदर संजयजी।
बहुत सुंदर कविता लगी, साक्षात् माँ सरस्वती को समर्पित सुंदर
मैं आज के हिंद का युवा हूँ,
मुझे आज के हिंद पर नाज़ है,
हिन्दी है मेरे हिंद की धड़कन,
सुनो हिन्दी मेरी आवाज़ है.
www.sajeevsarathie.blogspot.com
www.dekhasuna.blogspot.com
www.hindyugm.com
9871123997
सस्नेह -
सजीव सारथी
शानदार!!
सभी को आत्मीय प्रतिसाद के लिये शुक्रिया.पुनीत भाई लताजी को चुका हुआ मानने का सवाल ही नहीं.अभी हाल ही में ; समझिये पंद्रह दिन पहले टाइम्स म्युज़िक से लताजी की आवाज़ में श्री गणेश एलबम जारी हुआ है. मैने तो लता दीदी के अमृत महोत्सव की बेला में एक लेख का शीर्षक दिया था प्रलय के बाद भी बची रहेगी लता की आवाज़.किसी(दु:खी) ने नाम बताये बग़ैर फ़ोन किया और कहा हुज़ूर लताजी को इतना सिर पर चढ़ाते हो ये तो बताइये जब प्रलय आ जाएगा तो लताजी को सुनने के लिये बचेगा कौन..? मैने कहा भाई साहब रूपक में कही बात को आपका आप इतना हव्वा क्यों बना रहे हैं..और हाँ बुरा मत मानियेगा प्रलय आने के बाद लताजी की आवाज़ बचेगी कि नहीं ये तो नहीं पता लेकिन शर्तिया बता दूँ आप जैसे बेसुरे लोग तो नहीं बचेंगे..ये तो पक्का है.हालाँकि ये भी सच है कि दीदी अस्सी के पास आते आते थक सी गईं हैं और वे जो कर गुज़रीं है वही क्या कम है ?उनका होना इस बात की ईश्वर यहीं है...यहीं कहीं है...महसूस करना हो तो लताजी को सुनिये.अजातशत्रुजी ने कहा है जो रमण महर्षि,श्री राहकृष्ण परमहँस को नहीं समझता वह लता को नहीं जान पाएगा.
छोटा था,आँटिजी के पास रेडियो अद्भुत सौगात थी रेडियो क्योंकि..जिस रेडियो की संगत मैंने कच्ची उम्र में की थी उसी से जाना,बोली से मिश्री सच्चीमुच्ची घुलती है चारोमेर घेर-घुमेर.. तभी ना घर के बड़े-बूढ़े कहते हैं,मीठा बोलो सबका दिल जीतो.लता मंगेश्कर का जन्म है.. आज भोर के सूर्य को भी खूब पता था ब्रम्हमुहू्र्त में मिले अर्ध्य जो,धरती मय्या पर मैहर बरसाया.मिले जो माया जी के शब्द-नगीने दिन अपना भी घणां सज आया.
और बताना है आपको..सेहत सबकी टनाटन रहे हारी-बीमारी छूमंतर हो,हमारे मालवा से पुण्य सलिला निरोगधाम पत्रिका बड़ी मानी निकलती है,
लता दीदी की कंठ-संजीवनी ऐसे ही रोग भी हरती है.
माया जी भलीचंगी हो जल्दी आप लिखती ही जाऐं जीवन का राग..बरस-बरस जनमदिन की रौनक रहें तनमन में,पाऐं और बाँटे अद्भुत सौगात...
सचमुच अद्भुत है कविता संजय भाई और मेरी अपठित भी थी। साधुवाद एक बेशकीमती नज़राना हमे देने के लिए लताजी के जन्मदिन पर। आज मेरी जीवनसाथी का भी जन्मदिवस था और संयोग देखिये कि मेरी दीदी ने उसके लिए लताजी के एक साक्षात्कार का लिंक उपहारस्वरूप भेजा और आपने दीदी पर लिखी कविता :)
संजय जी लता दीदी पर मायाजी की कविता पढी ..अच्छी लगी ...साधुवाद
" Goonjatee rahe yah,
Swar-lahree har daur men;
yahee duaa kartaa hai,
har bachchaa Indore men!"
शुभ लाभ ।Seetamni. blogspot. in
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