Tuesday, October 2, 2007

बापू आज होते तो क्या कहते ?

जुदा जुदा विषयों को लेकर हमारे मन में भी नई नई विचारधारा बहती है.यकायक ही मन ने पूछा कि इस ज़माने में जब असहिष्णुता,आतंक और बे - ईमानी पूरे शबाब पर है ; इन हालात में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी यानी हमारे प्रिय बापू कैसे प्रतिक्रिया देते या क्या आचरण करते . उनके भव्य व्यक्तित्व को देखते हुए मैने ये रूपक गढ़ने की कोशिश की है.मैने बापूजी को देखा नहीं ; सत्य के प्रयोग किशोरावस्था में पढ़ी थी जिसने बहुत कुछ सिखाया..हो सकता है इन समकालीन परिस्थियों और बापू को लेकर मेरी अवधारणा यदि ठीक न हो तो इसे मेरी कुमति जानकर नज़र-अंदाज़ कर दें

20 x 20 क्रिकेट में भारत जीत गया बापू !

तो क्या हुआ ऐसा खेल तो कर्नल सी.के.नायडू तीस के दशक में खेल चुके हैं
इतना इतराने की क्या ज़रूरत है.देश का नाम हुआ है ..चलो अब फ़िर जुट जाओ मेहनत में !

बापूजी ..हिन्दी सप्ताह आ गया ..आपको शुभारंभ करना है !

हिन्दी को बढ़ाने के लिये भी सप्ताह मनाने की ज़रूरत पड़ रही है ? आश्वर्य है.

पहले ठीक से बोलना और लिखना तो सीख लो.पब्लिक स्कूलों के नाम पर क्या धांधली

मचा रखी है आपने ? बच्चे अड़तीस,रेजगारी,आधा किलो,तरकारी जैसे शब्द भूल चुके हैं

पहले माता-पिता बच्चों को मम्मी डैडी बुलवाना तो छुड़वाएँ..फ़िर हिन्दी सप्ताह मनाएँ.

बापूजी..इंटरनेट पर खूब फ़लफ़ूल रही है हिन्दी . क्या आप कंप्यूटर सीखना चाहेंगे ?

हाँ...हाँ...चलो चलो अभी देखूंगा...सुना है ब्लॉग्स के ज़रिये अच्छी हिन्दी लिखी जा रही है...चलो नवजीवन के नाम से मेरा ब्लॉग बनाओ.

मज़हब के नाम पर दुकानदारियाँ चल रहीं हैं बापूजी...क्या करें ?

देखो बच्चों...मज़हब,धर्म ये सब नितांत निजी आस्थाओं के विषय हैं.जो करना चाहते हो

अपने घर में करों..देश को मज़हबी आँधी से बचाना चाहते हो तो सार्वजनिक रूप से ऐसी गतिविधियों

पर प्रतिबंध लगाओं जिससे किसी भी दूसरे धर्म के मानने वाले भाई-बहन की भावना को ठेस पहुँचे.

बापूजी आपने तो अपना काम पोस्ट कार्ड से चलाया..अब हम तो मोबाईल से चिपके हैं..आपकी प्रतिक्रिया ?

मोबाइल लेकर तुम लोगों ने अपनी चलायमान ताक़त को ख़त्म कर लिया है; अब भी वक़्त है...बचो इससे...कितना बोलते हो...अच्छा मोबाइल पर बात करते हो वह तो ठीक है...सुनते सुनते खु़द क्यों मोबाइल होने लगते हो.चिठ्ठी का अपना मज़ा है...लिखी...पोस्ट की....चिठ्ठी चली...पहुँची..बँटी...बाँची...सबकुछ कितना लयबध्द है इसमें...त्वरित के चक्कर मे भटक गए हो तुम.

बात तो कर रहे हो...पहुँच कहीं नहीं रहे हो ...ये सत्य जान लो.

बच्चे नहीं सुनते हमारी..क्या करें ?

तुमने कहाँ सुनी तुम्हारे अपने पिता की.सुनो चिल्लाने से कुछ नहीं होगा...उन्हे अपने मित्र बनाओ..देखो कैसे मानते हैं तुम्हारी बात.

परिवार टूट रहे हैं...कैसे बचाएँ इसे ?

परिवार नाम की संस्था भारतीय दर्शन की शक्ति है.बिखरो मत...जुड़े रहने में ही सार है.

त्याग का भाव मन में रखो...देखना कभी नहीं बिखरोगे.बडे़ का किया अच्छा मानो और छोटे का किया अपना ही किया जानो ..देखो कैसे टलते हैं परिवारों के विभाजन.

परमाणु संधि पर आपके क्या विचार हैं बापू ?

बम से मानवता अपने लिये समाप्ति का साज़ोसामान जुटा रही है.ये आत्मघाती है .बचो इनसे.भारतीय दृष्टिकोण से ही बचेगा विश्व..सबको अहिंसा के रास्ते पर आना होगा.

कल मै न रहूँगा पर मेंरी बात याद रखना...आतंक..आक्रमण और अपराध आपके ज़माने के विषधर हैं...अपनी अगली पीढियों को बचाना चाहते हो तो पूरे विश्व को अस्त्र विहीन करना होगा.इसी से बचेगी मानवता ...इसी से बचेगा भारत.

गाँधीजी यानी आप जैसी लोकप्रियता के लिये क्या करें ?

जो बोलते हो वैसा पहले कर के दिखाओ..ये है सच्ची गाँधीगिरी.


5 comments:

Udan Tashtari said...

सही है संजय भाई.

महात्‍मा गांधी जी के जन्‍म दिवस पर शत शत नमन.

Gyan Dutt Pandey said...

सही लिखा. बापू मॉडरेशन की भाषा हैं. बापू किसी विषय पर धोबी पाटा नहीं मारते पर आपको सोचने को बाध्य कर देते है!

VIMAL VERMA said...

संजय भाई, मै बहुत देर से आया पर पढ कर मज़ा आया, सही लिखा है आपने.. एक बात तो रह गई कि गांधी जी के उन बंदरो का क्या होगा जो अब हमारे समाज मे कम होते जा रहे है? इस पर लिखने की ज़रुरत नही है मै मज़ा ले रहा था, वैसे व्यंग लिखने में आपका जवाब नही.

sanjay patel said...

आप सभी का विनम्र आभार.

bhairav pharkya said...

Sach kahta hun Bapu !
Sach kahta hun bapu! gar tum aaj jind hote;
parayon ki nahin, apnon ki ninda dhote ;
bhool jao Rajghat par Ramdhun,sampradayikta jhalakti hai esmen;dekhkar apnon ki kartuten, khud pe sharminda hote !
BHAIRAV PHARKYA ,
SAN RAMON,CALIFORNIA,U.S.A.