कविवर हरिवंशराय बच्चन के यशस्वी सुपुत्र अमिताभ बच्चन 11 अक्टूबर को अपना जन्मदिन मनाने जा रहे हैं. 1998 में ख़ाकसार को फ़्री-प्रेस अख़बार के एक विशिष्ट आयोजन में अमिताभजी से मिलने का दुर्लभ अवसर मिला. कार्यक्रम में हज़ारों लोग मौजूद थे और मंचासीन थे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह,स्व.प्रमोद महाजन,चिंतक और लेखक स्व.रफ़ीक़ ज़कारिया.श्रोतावृंद अमिताभ बच्चन को सुनने को बेताब. मुझे कार्यक्रम संचालन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी. अपने भाषण के पूर्व बोल रहे श्री महाजन के वक्तव्य के बीच अमितजी ने इशारे से मुझे पास बुलाया. पूछा मुझे कितनी देर बोलना है (उनकी शराफ़त और सलीक़े से मेरा ये पहला और संभवत: आख़िरी सा वास्ता था) मैं सहमा सा बोला..अमितजी आपके के लिये कौन सी समय मर्यादा...लोग तो आपके लिये ही आए हैं...नहीं नहीं...अमितजी बोले...आप बताईये कितनी देर बोलूँ मैं...मैने कहा कम से कम पंद्रह मिनट तो बोलिये..अमिताभजी ने कहा अच्छा ठीक है.
मैं अपनी जगह पर आ गया.प्रमोद जी बोल रहे थे और सुनने वाले हो रहे थे बेसब्र.मैंने फ़िर मौक़ा ताड़ा सोचा अमितजी से बातचीत की शुरुआत तो हो ही गई है..फ़िर पहुँचा उनके पास और बताया की जब बाबूजी (बच्चन जी) की मधुशाला को लेकर देश में कुछ विवादास्पद स्थिति बनाने की कोशिश की जा रही थी और प्रचारित किया जा रहा था कि कवि बच्चन देश शराबख़ोर बनाने जा रहे है.
पचास के दशक में ही बच्चनजी की आना इन्दौर हुआ ..वे यहाँ श्री म.भा.हिन्दी साहित्य समिति (जो पुरातन साहित्य पत्रिका वीणा का प्रकाशन कर रही है पिछले अस्सी बरसों से..चाहें तो मेरे विगत ब्लॉग में उसका ब्यौरा पढ़ लें) द्वारा आयोजित कार्यक्रम में शिरकत के लिये आए थे. इस आयोजन के ख़ास मेहमान थे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी...पूज्य बापू तक भी बच्चन जी की शिकायत पहुँचाई गई.बापू ने बच्चन जी को तलब किया...बच्चन जी ने अपनी मधुशाला में से कुछ पद बापू को सुनाए (ख़ासकर मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने वाला) इसमें कहीं धर्म-निरपेक्षता का मौन संदेश भी था.बापू बडे़ प्रसन्न हुए और मधुशाला के बारे में किये जा रहे कु-प्रचार का खंडन किया.
अमिताभजी ने ये पूरा वाक़या ध्यान से सुना और मुस्कराते हुए कहा कि आपने बहुत अच्छा किया जो ये प्रसंग मुझे बताया ( इसका ज़िक्र क्या भूलूँ क्या याद करूँ में भी है) मैं वैसे ही अमिताभ बच्चन जैसे महानायक के कार्यक्रम को एंकर करते हुए अभिभूत था और इस पर अमित जी से मिली प्रशंसा ने तो जैसे मेरी ख़ुशी दोहरी ही कर दी.
ये खु़शी सातवें आसमान पर पहुँच गई जब मेरे द्वारा दी गई जानकारी से ही अमितजी ने अपने संबोधन को शुरू किया..और कहा कि मुझे खु़शी है कि मेरे पूज्य पिता के जीवन में इन्दौर का ख़ास महत्व है और यह कहते हुए अमितजी ने बच्चन जी और बापू की भेंट का खु़लासा अपने भाषण में किया. मीडिया ने भी दूसरे दिन इस प्रसंग का ख़ास नोटिस लिया.
ब्लॉबर बिरादरी के साथ इस प्रसंग को साझा करने एक मक़सद ये भी है कि मैं ये भी बताना चाहता हूँ कि अमितजी को निकट से देखते हुए और उनसे बतियाते हुए मैंने उन्हें निहायत सादा तबियत इंसान पाया . देश का सर्वकालिक बड़ा सेलिब्रिटी होने का कोई नामोनिशान उनमें नज़र नहीं आया. तब लगा कि कोई बड़ा तब बनता है जब वह इंसानी तक़ाज़ों से संजीदा सरोकार रखता है. उनमें नज़र आई एक विशिष्ट भद्रता का मैं क़ायल हो गया.उनके जन्मदिन की बेला में कामना करें कि उनमें संस्कारों की अनुगूँज बनी रहे...वे स्वस्थ रहें ...चैतन्य रहें और भारतीय चित्रपट उद्योग की महती सेवा करते रहें.
चित्र में ख़ाकसार अमिताभ बच्चन से बतिया रहा है ...मेरी शक्लो-सूरत तो ढल गई है लेकिन माशाअल्लाह ! महानायक का जलवा तो दिन दूना रात चौगुना दमक रहा है.
4 comments:
कोई बड़ा तब बनता है जब वह इंसानी तक़ाज़ों से संजीदा सरोकार रखता है.
--बिल्कुल सही फरमाया आपने. अच्छा लगा आपका यह संस्मरण पढ़ना. महानायक तो फिर महानायक ही हैं. उनके जन्म दिवस पर बहुत बधाई एवं शुभकामनायें.
सही कहा आपने!!
शुक्रिया यह संस्मरण साझा करने के लिए।
अमिताभ चाहे कितने भी विवादित हों या रहे हों उनके संस्कारों की झलक उनमे सदा दिखाई दी है, और खासतौर से जब वह हिंदी बोलते हैं तो दिल खुश हो जाता है उनकी हिंदी सुनकर!!
अच्छा लगा यह संस्मरण! साझा करने की शुक्रिया!
शुक्रिया आप सभी का.संजीत भाई आपने अमितजी के बारे में हिन्दी वाली जो बात कही वह वाक़ई महत्वपूर्ण है. आज के सारे खान न हिन्दी ठीक से बोलते हैं न अंग्रेज़ी.अमिताभ इस मामले में निश्चित ही विशिष्ट हैं.आपको,अनूप भाई और समीर भाई को भी इस प्रविष्टि की सराहना के लिये साधुवाद.
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