आजकल के आयोजन आत्मीयता कम और औपचारिकता ज़्यादा उड़ेलते हैं।
ज़्यादातर कार्यक्रमों में आप आसानी से कोई जोड़-तोड़, सेटिंग,
समीकरण और साज़िश सूँघ सकते हैं।
आजकल शुभारंभ, वर्षगॉंठ, वार्षिक समारोह, विमोचन और
संगीत प्रस्तुतियों में अतिथि की
एक और "गौत्र' उपजी है... विशिष्ट अतिथि या विशेष अतिथि।
अब सीधी-सी बात है कि कोई ख़ास है, विशेष है; विशिष्ट है
तभी तो उसे अतिथि बनाया है।
एक दूसरा प्राणी है अध्यक्ष। प्रोटोकॉल की महिमा जानें तो अध्यक्ष वह व्यक्ति होता है
जो मंच पर विराजित अन्य अतिथियों से ज़्यादा(?) क़ाबिल और बेजोड़ है।
तो एक को बनाइये मुख्य-अतिथि और दूसरा हो गया अध्यक्ष यानी सदर।
पर मजबूरी यह है कि ये दो तो क़ाबिलियत के आधार पर आ जाएँगे
लेकिन जिनसे कुछ काम सलटवाना है या जिन्हें किसी तरह "ओबलाइज' करना है
तो उन्हें कैसे "एडजेस्ट' करें ? सो बना दिया "विशिष्ट अतिथि'
वैसे इस विशिष्ट अतिथि नाम के सोलह नंबर वाले पाने ने आयोजक
के समस्यारूपी कई बोल्ट ठीक कर दिए हैं। अब कोई किसी को
अध्यक्ष और मुख्य अतिथि बना चुका है तथा दो-चार और से मतलब निकालना है
तो बना दिया उन्हें विशिष्ट अतिथि ! राजनीतिक मंच पर तो यह "विशिष्ट अतिथि फ़ार्मूला' ख़ूब काम आता है।
मुख्यमंत्री आए हो तो उनका मुख्य अतिथि होना तो जन्मसिद्ध अधिकार है;
राज्यपालजी भी साथ हैं तो वे अध्यक्ष हो गए, अब वरिष्ठ मंत्री, प्रभारी मंत्री, क्षेत्रीय विधायक बेचारों का क्या करें ?
बना दो भई वि.अ. यानी विशिष्ट अतिथि। अगले भी झमाझम कि वाह ! आयोजक ने हमें ख़ूब सजाया...मान दिया... भई मान गए।
इन घेतलों को इतनी अ़क़्ल नहीं कि हुज़ूर, आपको मंच को भरा-पूरा दिखाने
की ग़रज़ से नुमाइश किया गया है।
आप इन वि. अ. को भी देखियेगा, बोलने खड़े होंगे तो मुख्य अतिथि
और कार्यक्रम अध्यक्ष के सम्मान में क़सीदे गढ़ने में ही
पॉंच-सात मिनट खा जाएँगे, फिर विषय पर आएँगे।
तदनंतर आयोजक का आभार मानने में पॉंच मिनट लेंगे।
मुख्य अतिथि और अध्यक्ष सोचता है कि ये विशिष्ट अतिथि ही
इतना ज्ञान पेल गए, अब हमें क्या बोलना है ?
वि. अ. के बारे में ज़्यादा समझना हो तो शादी के बैण्ड को देखिएगा !
एक बजती है काली बंसी क्लैरियोनेट ; वह हुई मुख्य अतिथि और एक बजता है ड्रम;
वह हुआ अध्यक्ष और उसके बाद सारे पों-पों करते बाजे यानी ये हुए विशिष्ट अतिथि !
वे न सुर में चलते हैं, न ताल में । उनकी भर्ती सिर्फ़ भीड़ बढ़ाने, बाजे का जलवा दिखाने और बारातियों का मुग़ालता बढ़ाने के लिए होता है कि आपके सम्मान में
"इत्ते' लोगों का बैण्ड बुलाया है।
इस सबसे माहौल बन जाता है । समझ गए न आप विशिष्ट अतिथि की औक़ात।
तो अबकी बार यदि आपको कोई विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित करे तो प्रेम से कहिएगा
-भैया फलॉं दिन तो मैं शहर में ही नहीं हूँ... अगली बार ज़रूर आऊँगा,
लेकिन अतिथि के रूप में विशिष्ट अतिथि के रूप में नहीं !
4 comments:
गांठ बांध ली है. अब तो आपके बुलावे में भी न आएंगे. :)
आगे के लिये तो बात गांठ बांध ली है. पर पिछला अनुभव तो मजेदार रहा था जब अलग अलग coaching class के नये बच्चे थे सामने और अपने pmt entrance के top रैंकिंग में आने का गुर उन्हें बतलाना था. मैं गुर क्या बताता अपना रौब गांठना ज्यादा था. ;)
यह तो मस्त है समारोह शास्त्र।
काश कोई एक बार तो मुझे "मुख्य अतिथि" बनाये…
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