किताबें
किताबें करती हैं बातें
बीते ज़मानों की
दुनिया की, इंसानों की
आज की, कल की
एक-एक पल की
ख़ुशियों की, ग़मों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की
क्या तुम नहीं सुनोगे
इन किताबों की बातें ?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं
किताबों में चिड़िया चहचहाती हैं
किताबों में खेतियॉं लहलहाती हैं
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं
परियों के किस्से सुनाते हैं
किताबों में राकेट का राज़ है
किताबों में साइंस की आवाज़ है
किताबों में कितना बड़ा संसार है
किताबों में ज्ञान की भरमार है
क्या तुम इस संसार में
नहीं जाना चाहोगे
किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं
6 comments:
यहां रहने की पूरी जगह है. भेज दीजिए.
नहीं भाई, कोई नहीं भेजेगा, उन्हें सम्मान के साथ लाइब्रेरी या बुक स्टोर से ही लाना होगा और श्रद्धा एवं आस्था के साथ उनका पाठ करना होगा. तभी वो तुमसे कुछ कह पायेंगी.
सही है सफदर के विचार पुस्तकों पर। पुस्तकें ही ओढ़ना-बिछौना हैं हमारी जिन्दगी में।
बहुत आभार-हाशमी साहब की इस बेहतरीन कविता को यहाँ पेश करने के लिये.
लो भाई सफदर की याद दिला दी आपने । बीता बिसरा काफी कुछ याद आया और याद आए सफदर के परचम गीत । जिन्हें हम बरसों से तलाश रहे हैं ।
शायद जबलपुर वाले हमारे घर में मौजूद हैं । इस बार 'घर' लौटकर उन्हें खोजा जायेगा ।
सफदर हाशमी का लेखन और रंगमंच हमेशा याद किया जाएगा।
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