तक़रीबन चार दिन इंटरनेट कनेक्शन बंद रहा. मेहरबानी
भा.सं.नि.लि. की. अब जब इंटरनेट बंद था तो अपनी मेल्स भी
चैक नहीं हो पाई...ब्लॉग पर नई प्रविष्टि का सवाल ही नहीं
उठता और मित्रों के ब्लॉग भी नहीं पढ़ पाया.एक नितांत लम्बी
ख़ामोशी । सो क्या करता रहा इन दौरान ? जानना चाहेंगे ?
-बहुत सारे पत्र अनुत्तरित थे , उनके जवाब दिये.पत्र लिखकर दिये
क्योंकि ये उन मित्रों/परिजनों के यहाँ ई-मेल सुविधा
नहीं
-अपने कमरे की सफ़ाई की.ऐसी कई पुस्तकें पड़ी थीं कमरे
में जिन्हें पढ़ा.....कुछ नहीं पढ़ा....बाद में पढ़ेंगे ऐसा सोच
कर सिरहाने रख छोड़ा ....इन सबको सहेजा...नज़र डाली
पुस्तकों के नाम पर....जो मित्रों से उधार लीं थीं पढ़ने के
लिये, उन्हें अलग रखा ...जो पढ़ ली गईं थीं उन्हे सम्हाल
कर यथास्थान रखवाया.
-कैसेट / सीडीज़ टेप के इर्द-गिर्द पड़े थे.कुछ सुनने के लिये.कुछ
समीक्षा के लिये और कुछ बिना काम के. अच्छी ख़ासी धूल
जम गई थी इन सब पर....उसे साफ़ किया.कुछ कैसेट्स के
इनले यहाँ वहाँ थे...उन्हें सहेजा...ठीक से उसी जैकेट या सीडी
कवर में रखा जिसमें रखा जाना चाहिये था.
-ब्लॉग लिखने के लिये कई संदर्भ अपनी काम करने की टेबल
पर दो-तीन फ़ोल्डर्स में रखे थे ...उन्हें रीव्यू किया ...उन पर नोट्स
लिखे और समय क्रम तय किया कि कब तक इन्हें जारी कर देना है.
-ऐसे कपड़े (शर्ट और ट्राउज़र्स) जो बटन विहीन हो रहे थे और
कहीं जाते वक़्त निकाले और बटन न होने या फ़टा होने से बस
ऐसे ही अपने वार्डरोब में बिखेर कर रख दिये थे उन्हें
श्रीमतीजी के ध्यान में लाया और बताया कि इनमें फ़लाँ
सुधार करना है.
-बैंक की पास-बुक अधूरी थी,पूरा करवाया,मार्च समाप्ती के मद्देनज़र
ब्याज के सर्टिफ़िकेट के लिये बैंक में पत्र लिखकर भेजे।टीडीएस
सर्टिफ़िकेट की फ़ेहरिस्त बनाई।
तो कई काम और भी निपटे...जिनकी सूची फ़िर कभी....लेकिन
महसूस किया कि ब्लॉगिंग और कप्यूटर पर दिये
जाने वाले नियमित समय में से
यदि थोड़ा समय रोज़ निकाल लिया जाए तो ये सारे काम ख़रामा
ख़रामा ही सही पूरे तो हो सकते हैं.अव्यवस्थित रहने के नुकसान
हमेशा ही बने रहते हैं....चीज़ें मिलतीं नहीं ...मिलतीं हैं तो उस वक़्त
जब हमें उनकी ज़रूरत नहीं होती.
इंटरनेट निश्चित रूप से ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बन गया है
लेकिन उसने दीगर कामों का क़ीमती समय भी खा लिया है.
हम मनुष्य ठहरे...हमें क़ुदरत ने समझ दी है...हर काम का
आगा-पीछा जानते हुए हमें समझदार होना होगा...खु़द अपने लिये
ऐसी खु़दगर्ज़ी में क्या बुराई है जो आपको अनुशासित बनाए...
परिवार की खीज से बचाए और हर काम का एक सुनिश्चित वक़्त
और दस्तूर होता है इस बात का भान कराए....तो अब जब
कंप्यूटर ख़राब हो या इंटरनेट बंद हो तब ही नहीं इन सबके
ठीक रहते भी अन्य कामों के लिये समय निकालने की ठानी है......देखते हैं...इंटरनेट कनेक्शन के बंद होने से मन कोई सबक़ लेता है या नहीं ?
13 comments:
ठीक फरमाया
बिल्कुल सही लिखा है--मेरे ख्याल में एक दिन के लिए मोबाइल फ़ोन सर्विस और इंटरनेट सर्विस compulasory बंद होनी चाहिये. हाँ ,टीवी चैनल्स प्रसारण भी.
bilkul theek kaha..
सही है - जब इण्टरनेट नहीं था तो हम भी आदमी थे काम के!
संजय जी मैंने टाइम टेबल बनाया हुआ है, सुबह एक घंटा और देर रात को एक घंटा, बस इसके अलावा इंटरनेट की तरफ़ झाँकना भी नहीं, इतने में काम निपटा तो ठीक नहीं तो अगले दिन… बहुत सुकून रहता है… आप भी करके देखिये…
सही कहा आपने!!
अपन ज्ञान दद्दा वाली बात से सहमत हैं :)
सही कह रहे हैं-सब बड़ा अस्त व्यस्त हो जाता है. कुछ तो कार्य प्रणाली तय करना होगी.
आपकी बात तो बिल्कुल ठीक है... मैं तो कभी-कभी मोबाइल भी बंद कर देता हूँ, इस इंटरनेट के साथ-साथ.
यह ज़रूरी है जिससे हम प्रौद्योगिकी के बिना सरल-सहज जीवन जीना भूल न जाएं .
बिल्कुल सही कहा । मेरा नेट कनेक्शन बुरी तरह से बीमार था दो तीन दिनों से ।
आपकी लिस्ट जैसे हमारे भी कई अधूरे छूटे काम हुए । लेकिन एक बेचैनी मन पर तारी रही ।
सच कहें तो नेट चलना और ना चलना दोनों ही प्रॉब्लम वाली बात है भईया ।
सभी का शुक्रिया। विविध भारती के रंग-तरंग कार्यक्रम में बजने वाली मोहम्मद रफ़ी सा. की
मशहूर ग़ज़ल याद आ गई....
कितनी राहत है दिल टूट जाने के बाद
ज़िंदगी से मिले मौत आने के बाद
(दिल को कंप्यूटर समझ लें और मौत को
इंटरनेट कनेक्शन का बंद हो जाना)
चलिये हर मुशकिल से यही जानते हैँ हम कि,
मुशिकिलेँ आसाँ नहीँ होँगीँ जब तक साँसेँ बाकी
आपकी बातें बड़ी अच्छी और काबिलेगौर हैं।
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