Wednesday, June 18, 2008

आज उस कबीर का प्रकटोत्सव जो कभी ग़ायब ही नहीं हुआ !




आज कबीरदास जी के प्रकटोत्सव पर शहर में कई कार्यक्रम- मेरे शहर के अख़बारों में ये शीर्षक पढ़कर सुबह-सुबह मन विचलित हो गया.सोचने लगा मैं कि जो शख़्स आज अपने लिखे से प्रति-पल हमारे इर्द-गिर्द मौजूद है उसका प्रकट होना चौंकाता है. इसका मतलब हम कबीर के लिखे का मर्म ही नहीं जान पाए.

दीक्षा का मामला हो, ज़ात-पात की बात हो ,आडम्बर या कर्मकांड के चोचले ; कबीर ने हर एक बात पर चोट की. वे न अपने समय में किसी पुराण-पंथी को रास आए न आज आ रहे हैं . लेकिन क्या बात है कि अपनी दुकान चलाने वाले कबीर के प्रकट होने की बात करते हैं.जिस व्यक्ति ने अपने जन्म और मरने को लेकर भी साफ़गोई से अपनी बात कही, आज हम उसी कबीर को एक अवतार या धर्मगुरू बना कर स्थापित करने पर तुले है. कबीर कभी मान्यताओं,मंदिरों और मज़हबों के हामी नहीं रहे . उन्होंने जो किया वह अनजाना नहीं और मेरे लिखने से जाना नहीं जाएगा.मैं तो बस आज अख़बारों में पढ़ी ख़बर से दु:खी होकर आपसे बात करने बैठ गया. क्या हम ऐसा समय भी देखेंगे जब इस देश में कबीर मंदिरों की स्थापना भी होने लगेगी. भागवत कथाओं और राम कथाओं की तरह कबीर कथाओं के भव्य और महंगे आयोजन होने लगेंगे.

कबीर कभी एक व्यक्ति या धर्म-पंथ नहीं रहे. वे आज़ाद ख़याली के पहले पैरोकार थे। वे मानते थे कि मनुष्य बड़ा है और इंसानी तक़ाज़े सर्वोपरि हैं. जिस व्यक्ति ने मूर्तिपूजा जैसी बात को भक्तिकाल में ख़त्म करने की बात उठाई हो; उस व्यक्ति और चिंतक के प्रकटोत्सव की बात बेमानी लगती है. कबीर एक विचार हैं जिसे हर धर्म और मज़हब को मानने वाला अनुसरण में ला सकता है. कबीर एकमात्र ऐसी संस्था बन गये थे जिसे आज वैश्विक सोच के साँचे में स्थापित किया जा सकता है. कबीर-वाणी महज़ ग्रंथों का पारायण नहीं, आचरण में लाने वाला आख्यान हैं . सामाजिक सरोकारों के लिये चैतन्य ब्लॉग बिरादरी मेरे अभिमत और दर्द से सहमत होगी ऐसा मैं मान कर अपनी बात को विराम देता हूँ...
यदि आप कबीर के पद पं कुमार गंधर्व की आवाज़ में सुनना चाहते हों हमारे अज़ीज़ संगीत प्रेमी ब्लॉगर-भ्राता अशोक पाँडे के कबाड़ख़ाने पर ज़रूर जाएँ ......
ये रही लिंक जिससे आप कुमारजी के कबीर पद सुन सकते हैं :http://kabaadkhaana.blogspot.com/search/label/Kabeer

(चित्र मेरे गायक अभिनेता मित्र शेखर सेन का है जो इन दिनों पूरी दुनिया में
कबीर,तुलसीदास और विवेकानंद के एकपात्रीय संगीत-नाट्य का सफल मंचन कर रहे हैं)

5 comments:

Udan Tashtari said...

चलो आपके यहाँ प्रोग्राम तो हो रहा है..हमारे यहाँ तो पता ही नहीं चलता. आभार आपका कि पता चलता रहता है.

पोटलीवाला बाबा said...

बाबाजी होते तो बहुत ही दुखी होते.
धंधेबाज़ी से ब़चाओ बाबा इस टैम को.

Ashok Pande said...

आपकी पोस्ट के तो शीर्षक ही ने सारी बात साफ़ कर दी संजय भाई! कमाल है! आपके मित्र सेन साहब बहुत जंच रहे हैं तस्वीर में. कुछ और खुलासे के साथ बताइये न उनके दिलचस्प काम के बारे में.

विभास said...

kabir per lekh padha... is samvedanheen aur tarkheenta ke daur me ek pad yaad aata hai.. 'saadho! ye hai murdo ka gaaw'

pallavi trivedi said...

bahut wajib hai aapki chinta...jinhone aadambar aur dhakoslon se sada door rahne ki baat kahi...unka prakatotsav ...kuch jamta nahi