हम जानते हैं कि ऐसे बहुत सारे कारण हैं जो हमारी सफलता में रोड़े अटकाते हैं..लेकिन हम चाहते हुए भी एक ऐसी लिस्ट तैयार नहीं कर पाते जो ये जता सके कि हाँ इन कारणों से हमारी व्यवसायिक क़ामयाबी में ख़लल पड़ता.एक छोटी सी कोशिश के तहत आइये नोट कर लीजिये वे बाह्य और आंतरिक कारण को हमारे कामकाज में ख़लल डालते हैं.हो सकता मेरे द्वारा तैयार की गई लिस्ट में एक दो कारण आप कम कर दें या बढ़ा दें.मैने सप्रयास इन कारणों पर चैक रखना शुरू किया और महसूस किया कि काफ़ी हद तक शिथिलता में कमी आई है.इन कारणों को जान लेने के बाद ज़रूरी है कि किसी तरह से इनसे बाहर निकला जाए..यदि आप भी कुछ नए कारण सूचीबध्द कर सकें तो मुझे भी उससे अवगत कराइयेगा.शुक्रिया.
बाह्य कारण:
- फ़ोन/मोबाइल की रूकावटें
- भेंट/मुलाक़ातें/सभाएँ
- बिना सूचना आकर मिलने वाले
- अत्यधिक काग़ज़ी कार्य
- संवाद की कमी
- नीतियों प्रक्रियाओं की कमी
- प्रबंधन में अरूचि
- योग्य एवं निपुण सहयोगियों का न होना
- सहकर्मियों द्वारा निर्देशों का अनुसरण नहीं करना
- टीम भावना का अभाव
- स्वार्थ,ईर्ष्या
आंतरिक कारण:
- काम टालने की आदत
- प्रतिनिधित्व की कमी
- अस्पष्ट उद्देश्य
- आत्मविश्वास/निर्णय क्षमता में कमी
- दोषपूर्ण स्व-प्रबंध
- आलस्य,प्रमाद और तनाव
- योजना बनाने में असमर्थता
- कमज़ोर कार्य सूची
- कार्य का अव्यवस्थित वितरण
- सही कार्य के लिये ग़लत व्यक्ति का चयन
- एक समय में बहुत कुछ कर गुज़रने की निरर्थक कोशिश
- दूसरों पर विश्वास की कमी
- दोषपूर्ण समय प्रबंध.
और अंत मे सबसे महत्वपूर्ण बात: हम जिनको समय देते हैं उनके लिये उपलब्ध नहीं होते....जहाँ पहुँच जाते हैं वहा पूर्व सूचना नहीं देते...दोनो ही स्थितियों में हम ही नुकसान में रहते हैं...आदमी चाँद पर चला गया...इंटरनेट से जुड़ गया ..लेकिन समय प्रबंधन के मामले में अभी भी बहुत पिछडे़ हुए है.इस मामले में मै आपके साथ एक वाक़या बाँटना चाहुँगा.मेरे एक मित्र हैं..उद्योगपति हैं..दुनिया भर में घुमते रहते हैं.विगत दिनों हाँगकाँग में थे वे.बताने लगे कि जिस होटल में वे ठहरे थे उसी में उनका मेज़बान पास के उप-नगर से आकर ठहरा था.सवेरे साथ में दोनो ने स्विमिंग की.एक प्याली चाय पीने के बाद मेरे मित्र ने अपने कोरियाई मित्र से पूछा तो हम कितनी देर बाद आपकी फ़ेक्ट्री का मुआयना करने चल सकते हैं..कोरियाई उद्योगपति बोला अभी नौ बज रहे हैं...मै आपको नौ सत्रह पर होटल की लाँबी में मिलता हूं.मेरे मित्र चकित कि ये कैसा टाइम शेड्यूल..खै़र..दोनो ने टाइम पर सहमति जताई और चल पडे़ अपने कक्ष में तैयार होने.मेरे मित्र बताने लगे कि सत्रह मिनट में बीसवीं मंज़िल पर पहुँचना,हज़ामत बनाना,नहाना और तैयार होकर लाँबी में पहुँचना थोड़ा असंभव सा प्रतीत हो रहा था सो मेरे मित्र महज़ कपडे़ बदल कर लाँबी में आ पहुँचे सवा नौ बजे..सोचने लगे कि ये कोरियाई सारा काम निपटा कर कैसे नीचे आएगा..लेकिन देखते हैं कि जैसे ही घडी़ ने नौ सत्रह बजाए श्रीमान लाँबी में हाज़िर ..न पहले न नौ सत्रह के बाद ...एक्ज़ेट नौ सत्रह...मेरे मित्र ने पूछा क्या वे नहाए नहीं तो जवाब मिला शेव भी कर ली,नहा भी लिये...कपडे़ भी बदल लिये और कमरे में बुलवा कर दो टोस्ट भी खा लिये...तो तैयार होने में कितना वक्त लिया...कोरियाई ने कहा...बस सात मिनट तैयार होने के ....सात मिनट ब्रेकफ़ास्ट के और तीन मिनट कमरे में आने - जाने के......अब बताइये क्या कहेंगे आप इसे...क्या आपको नहीं लगता कि हमारी जीवन शैली में अभी भी समय आख़िरी प्राथमिकता है.हम मैनेजमेंट तो ख़ूब पढ़ चुके...अब उसे आज़माने का दौर आ गया है.
5 comments:
समय प्रबंधन सही में सबसे बड़ी आवश्यकता है।
प्रिय संजय भाई,
समय प्रबन्धन की बात तो सही है. पर कितना मजा आता है जब प्रेमिका को टाइम देकर उसे घंटे भर इंतजार कराया जाय्. हालाँकि ऐसे खुशनसीब तो कम होंगे जिनकी प्रेमिका इंतजार करे. इतनी देर में तो कोई दूसरा प्रेमी ही मिल जायेगा. इसलिए समय प्रबन्धन जरूरी है. पर भाई साहब मुम्बई की ट्रैफिक में आपका समय प्रबन्धन धरा नहीं रह जायेगा क्या. होटल से होटल की लाबी अलग बात है. अगर विरार से चर्च गेट आना हो और आपको ट्रेन पे ट्रेन छोडनी पडे क्योंकि आप चठ नहीं पा रहे. और जब चढ गये तो ट्रेन हर स्टेशन से पहले रूक कर ये सोंचे कि प्लेटफार्म पर जाया जाये या नहीं. तो क्या कहेंगे. परंतु फिर भी धन्यवाद एक अच्छे लेख के लिए.
बसंत भाई...ठीक कहा आपने...मौक़ा और दस्तूर देखकर समय प्रंबधन करना ज़रूरी है.अनूप भाई ने भी इसी बात को रेखांकित किया है.मुंबई का तो हाल - बेहाल ही है.सारी ज़िन्दगी सोचते ही रहे कि ये करेंगे ...वो करेंगे...लेकिन...दो आरज़ू में कट गये ...दो इंतज़ार में. मै फ़िर भी मुंबई की समय प्रतिबध्दता का क़ायल हूं.
यह तो रोचक है - प्रबन्धन पर गूगल सर्च करते हुये एक जाने पहचाने ब्लॉग की साल भर पुरानी उम्दा पोस्ट पर आ टपकना!
अच्छा दृष्टांत।
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