Sunday, July 29, 2007
ग्रामोफ़ोन रेकाँर्डस के नयानाभिराम आवरण
अब जबकि सीडीज़,एम.पी. थ्री,आईपाँड्स और कैसेट्स का दौर पूरे शबाब पर है ग्रामोफ़ोन रेकाँर्डस हैं कि परिदृश्य से बाहर होते जा रहे हैं.जिनके पास ये रेकाँर्डस हैं वे जानते हैं कि इनके आवरण या कवर कितने आकर्षक आते रहे है. इनको सुनने के लिये लिये छोटे रेकाँर्ड प्लेयर्स के अलावा रेडियोग्राम्स का फ़ैशन भी चला था.जिनके ड्राइंगरूम्स में रेडियोग्राम्स रखे होते थे वे वाक़ई अभिजात्य वर्ग के लोग होते थे गोया रेडियोग्राम स्टेटस सिंबल हुआ करता था.अभी हाल ही मे मैने 78 आरपीएम रेकाँर्डों (जिन्हें चूडी़ वाले बाजे पर बजाया जाता था) के और दुर्लभ रेकाँर्ड्स के संकलनकर्ता सुमन चौरसिया से आग्रह किया कि वे समय समय पर कुछ आवरण देते रहें जिन्हे हम संगीतप्रेमी मित्रों के लिये इस ब्लाँग पर प्रस्तुत करते रहें.सुमन भाई तुरंत तैयार हो गए.दे गए मुझे चंद रेकाँर्ड्स.देखिये इन्हे आँखों को कितना सुकून देते हैं . ग़ौरतलब है कि जिन वर्षों में ये आवरण छपे हैं तब हमारे देश में आँफ़सेट और बहुरंगी मुद्रण की तकनीक लोकप्रिय नहीं हुई थी.ब्लाँक से ही होती थी छपाई लेकिन फ़िर भी ख़ूबसूरती बला की सी होती थी.आवरण दर-असल एक तरह का लिफ़ाफ़ा होता था..मोट ग़त्ते या कार्डबोर्ड पर छपा हुआ.एकतरफ़ एलबम का नाम..अमूमन कलाकार का चित्र और दूसरी ओर कलाकार का परिचय..एलबम में प्रकाशित गीतों की सूची और अन्य तकनीकी डिटेल्स यानी..संगीतकार,गीतकार,एलबम की थीम का विवरण और जारी करने वाली कम्पनी का नाम, पता , रेकाँर्ड नम्बर आदि..कभी कभी सामने की ओर कोई कलात्मक डिज़ाइन या पेंटिग की रंगत होती थी (यथा बच्चन जी की मधुशाला..गायक मन्ना डे, संगीतकार: जयदेव)
और कलाकार का चित्र पीछे की या दूसरी ओर होता था.रेकाँड संग्रहकर्ताओं की की दुनिया बड़ी निराली होती है दोस्तो..जल्द ही सुमन भाई के बारे में एक ब्लाँग आप तक पहुँचेगा.फ़िलहाल तो रेकाँर्ड के आकर्षक आवरणों को देखने का आनन्द लीजिये.मुझे पूरा यक़ीन है कि इन रेकाँर्ड्स के चित्र देखकर आप में से कई यादों के उन गलियारों के सैर कर लेंगे जब दिल और दुनिया बडे़ सुकून से रहती थी.ज़िन्दगी में बड़ी तसल्ली थी..इंसान की सबसे बडी़ दौलत थी शांति.आज जिस तरह से नये मोबाइल हैण्डसेट ख़रीदने का क्रेज़ बढ़ चला है तब रेकाँर्ड ख़रीदना भी एक जुनून हुआ करता था.हालाँकि ये रेकाँर्ड जीवन में वैसा अतिरेक और अतिक्रमण नहीं करते थे जैसे मोबाइल कर रहा है.दोस्तो रेकाँर्डस के ये चित्र हो सकता है बिना संगीत आपको ज़्यादा मज़ा न दे सकें लेकिन कोशिश करियेगा कि इन कवर्स में दस्तेयाब सुरीले संगीत की खु़शबू आपके मन की गहराई तक पहुँच सके . हो सका तो आगे भी श्री सुमन चौरसिया के हस्ते ये सिलसिला जारी रखेंगे..इंशाअल्लाह !
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6 comments:
संजय भाई, आपने तो अतीत का समूचा काल खण्ड प्रस्तुत कर दिया । सीडी और डीवीडी के प्लास्टिकिया कवरों पर मुग्ध मेरे बच्चों के लिए आपकी यह प्रस्तुतति किसी अजूबे से कम नहीं है । मेरे तई यह सब, सूर्यभानु गुप्त के इस शेर की तरह रहा -
यादों की इक किताब में कुछ खत दबे मिले
सूखे हुए दरख्त का चेहरा हरा हुआ
बहुत खूब संजय भाई। सचमूच अतीत के आंगन में पहुंचा दिया आपने। अभी कुछ दिनों पहले ही मैं गौहरजान की एक सदी से भी पहले रिकार्ड हुई ग्रामोफोन ज़माने की बंदिश अपने बेटे(१३)को सुनवा रहा था, तब उसे यही सब जानकारियां दी थीं कि एलपी, इपी वगैरह होते थे। डिस्क को चढ़ाना और उस पर सुई टिकाना। फिर रिकार्ड का मन्द गति से घूमना बड़ा दिलचस्प था।
संजय भाई थोड़े दिन पहले इरफान ने भी कुछ आवरण प्रस्तुत किये थे । सच बताऊं तो ये मेरे मन का काम है । विविध भारती में हम रिकॉर्डों के आवरण से बहुत प्रेम करते हैं । एक तो उन्हें फटने नहीं देते और अगर फट भी जाएं तो उनकी पूरी मरम्मत करते हैं । और उन्हें बाक़ायदा संभालते संजोते हैं । पहले तो कोई ठीक ठाक ज़रिया नहीं था पर आज कैमेरा मोबाईल बड़ी सुविधा देता है । पिछले दिनों अपनी पोस्ट पर छाया गांगुली की तस्वीर मैंने उनके ग़ज़लों के रिकॉर्ड से ही दी थी । मैं भी कुछ अनूठे रिकॉर्डों के आवरण जमा कर रहा हूं अपने मोबाईल पर । जल्दी ही प्रस्तुत करूंगा । सुमन चौरसिया के सहयोग से तो आप संगीत की क्रांति भी कर सकते हैं । अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा । वैसे पिछले सप्ताह मैं एच एम वी के स्थानीय ऑफिस गया था और शंकर जयकिशन के एक दुर्लभ रिकॉर्ड जैज़ स्टाईल का सी0डी0 रूपांतरण ले आया । विविध भारती के लिए भी हमने कुछ दुर्लभ सी डी खरीदीं । मुझे शंकर जयकिशन वाली इस सी डी से अपार प्रेम है । इसका आवरण भी कमाल का है । हालांकि सीडीज़ के कवर अकसर बेहूदे से होते हैं । पर कुछ में तो कलात्मकता भी होती है । हो सकता है कि हमसे बाद वाली पीढ़ी आगे चलकर सी डी के आवरण प्रस्तुत करे ।
बैरागीजी,अजितभाई,युनूस भाई आप यक़ीन करें मेरी एड एजेंसी के सभी कलाकार साथी इन रचनाओं को देख कर रोमांचित हो गए.अतीत कितना ख़ूशबूदार होता है ये आपके प्रतिसाद से महसूस हुआ. बचपन में गाँव जाता था तो मेरी दादी जिसे मै बाई कहता था पहुँचते ही माथे पर बोसा लेती थी.वो हाथ की पिसी तम्बाख़ू खाती थीं और उस वक्त उनके ओठों से वह तम्बाख़ू महकती थी.अब दादी नहीं; गाँव नहीं..लेकिन मेरे माथे पर उस तम्बाख़ू की महक बरक़रार है.वैसे इन रेकाँर्ड कवर से गुज़रा ज़माना ज़ाफ़रान की ख़ूशबी की तरह दिलोदिमाग़ में उतर आता है.
वाह भाई साहब बडा़ ही नेक काम किया है आपने, कई लोगों ने देखना तो दूर नाम भी नहीं सुना होगा कई कलाकारों का, इनके चित्र देखना एक मिठाई की तरह है जो मुँह में घुलती रहती है, काफ़ी समय तक, एक बात और चिठ्ठे पर लगाने के लिये "लोगो" का कोड क्या है ?
सचमुच आपने पुराने दिनो की याद दिला दी.:)
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