Wednesday, July 18, 2007
मोबाईल झूठ से घिर गई है ज़िन्दगी हमारी
मोबाइल तो ज़िन्दगी का वैसा ही हिस्सा हो गया है जैसे धूप,हवा और पानी.लेकिन इस साधन ने हमें काफ़ी हद तक झूठ की ओर धकेला है.हम सब ही उन तरीक़ों को इस्तेमाल कर रहे हैं जो निश्चित रूप से हममे मौजूद मनुष्य को मार रहे हैं.कैसे ? कुछ बानगियाँ देखें:
-मोबाइल बजा...आपकी फ़ोन बुक में काँल करने वाले का नाम है..आप अटेण्ड नहीं करना चाह रहे.. . बजने दीजिये घंटी.(पहला झूठ)
-मोबाइल बजा...आप नहीं जान रहे कौन काँल कर रहा है...आपने काँल अटेण्ड किया..सामने वाला कह रहा है...भैया दफ़्तर में हैं क्या ? आपने पूछा..क्यों ? काँलर : नहीं मै एक दस मिनट के लिये आना चाहता था...आप कहें तो..
आप मिलना नहीं चाहते..तो जवाब दे दीजिये...भाई साहब एक्चुली क्या है कि मैं दफ़्तर से आठ कि.मी.दूर हूँ अभी.तो यदि मुमकिन हो तो कल का रख लें (दूसरा झूठ)
-आपका जाना-पहचाना नम्बर चमक रहा है मोबाइल के स्क्रीन पर..आपका मन नहीं उठाने का..थोड़ी देर बाद थक कर काँलर ने घंटी देना बंद कर दी...अब टूँ..टूँ बजी है...एस.एम.एस. आया है ..उसी का जिसका काँल आपने अभी अभी अटेण्ड नहीं किया..संदेश में लिखा है...योर चैक इज़ रैडी...काँटेक्ट इमीजियेटली...(आपका भुगतान तैयार है,तत्काल संपर्क करें)आप तुरंत काँल कर रहे हैं ..कहते हैं मैडम आपका मिस काँल देखा..कैसे याद किया था...मैडम:मैने आपको एस.एम.एस.भी तो किया था सर ! आपने नहीं देखा क्या ? जी नहीं..बताएँ..मैडम: सर वो आपका पैमेंट था न ..आपकी डायरेक्टर साहब से बात हुई थी...चैक तैयार है सर..जी मैडम अभी आया(सरे आम तीसरा झूठ)
-पत्नी का फ़ोन है घर से (लैण्ड्लाईन नम्बर दिख गया है स्क्रीन पर) आपने फ़ोन उठाया..हाँ डियर बोलो..उन्होने पूछा..कहाँ हो आप..आपका जवाब रास्ते में ..सुनिये...बोर्नविटा ख़त्म हो गया है लेते आइयेगा...अरे यार तुम हमेशा लेट फ़ोन करती हो...मै तो तक़रीबन घर के गेट के पास ही आ गया हूं (जबकि कम से कर आधा कि.मी. दूर हैं) कहाँ हो दिख तो नहीं रहे...आपका जवाब ..अरे यहीं काँलोनी के चौकीदार से बात कर रहा हूं (चौथा झूठ)
-किसी ने आपको फ़ोन किया है...नम्बर आपका जाना पहचाना है...फ़ोन बुक में दर्ज़ नहीं है इसलिये नाम नहीं आ रहा मोबाइल के स्क्रीन पर ...आप उसे अटैण्ड नहीं करना चाह रहे हैं...वह ज़्यादा समझदार है...उसने तय किया है कि वह आज आपसे संपर्क कर के ही रहेगा...उसने पास बैठे मित्र के मोबाइल से आपको काँल किया है..आप नम्बर नहीं पहचानते सो आपने उठा लिया..लाइन पर वही है जिसको आप टालना चाहते हैं..हाँ मै रवि बोल रहा हूँ संजय भाई..मैने अभी फ़ोन लगाया था आपने उठाया नहीं...जवाब..यार मोबाइल पहली मंज़िल पर मेरे केबिन में रह गया था..बस अभी एंटर हुआ हूं..लेकिन ये नम्बर तो तुम्हारा नहीं (तफ़तीश कर रहे हैं हुज़ूर!)एक और मोबाइल ले लिया क्या ?अब सामने वाले को भी तो झूठ बोलना पडे़गा..सो उसका जवाब..नहीं नया नहीं लिया एक मित्र बैठे हैं यहाँ पर उनसे लेकर काँल किया तुम्हे.(यहाँ तक सच बोला है वह..अब झूठ सुन लीजिये) दर-असल अभी अभी मेरे मोबाइल की बैटरी डाउन हो गई न इसलिये इनसे लेकर लगाया है.(भरी धूप में पाँचवा झूठ )
-और अब आख़िरी झूठ...किसी का जाना पहचाना नम्बर घरघरा रहा है आपके मोबाइल पर...आप टाल रहे हैं..वह बेचारा शाम तक आपको ट्राय करता रहा...शाम को किसी से आपका लैण्ड्लाइन नम्बर मिला ..वह पूछ रहा है..यार आपको दिन भर से ट्राय कर रहा हूं ..बात ही नहीं हो पा रही..क्या मोबाइल नम्बर बदल गया..आपका जवाब..नहीं भाई घर भूल आया हूं आज..उसने जानकारी दी: घर पर भी कोई नहीं उठा रहा...आपका जवाब..कोई है ही कहाँ घर पर..तुम्हारी भाभी शाँपिंग करने गई है और बच्चे स्कूल !(छठा झूठ)
तो मित्रों ...ये झुनझुना हमें अव्वल दर्ज़े का झूठा बना रहा है..और ले जा रहा है ऐसी ग़र्त में जहाँ से वापस लौटना संभव नहीं.किसी अच्छाई के लिये या मजबूरी में एक - आध झूठ बोलना पडे़ तो समझ में आता है लेकिन दिन भर हम झूठ से घिरे रहें ..ठीक नहीं लगता..क्या यह भी एक खरा सच नहीं कि जिस झूठ का इस्तेमाल हम दूसरों के साथ कर रहे हैं वैसा ही कोई और भी हमारे साथ कर रहा है या कर सकता है...बददुआ नहीं दे रहा लेकिन कटु सच्चाई यही है कि किसी दिन हम सब (मै भी) मोबाइल झूठ के कारण ज़िन्दगी में बड़ा नुकसान कर बैठेंगे...अब जब भी आपके मोबाइल पर घंटी बजे तो यह भी सोचियेगा कि कहीं कोई मित्र/परिजन तकलीफ़ में तो नहीं..कहीं किसी को आपकी मदद की दरकार तो नहीं...कहीं कोई बीमार तो नहीं...दूर रिश्तेदारी में किसी बूढ़े काका के गुज़र जाने का समाचार तो नहीं..और दु:ख ही क्यों..कोई खु़शी देने वाली या सुकून भरी ख़बर भी तो हो सकती है....बहन का रिश्ता पक्का तो नहीं हो गया...बिटिया का रिज़ल्ट तो नहीं आ गया...आपका प्रमोशन तो नहीं हो गया..कोई सम्मान तो नहीं मिल गया आपको...पिताजी गाँव में ज़मीन का तीस साल पुराना केस तो नहीं जीत गए..माँ को आपकी याद तो नहीं आ रही...मित्र आपसे ये बताने को बेताब तो नहीं कि आज ही के दिन हमारी दोस्ती शुरू हुई थी ..
बहुत से अच्छे - बुरे समाचारों,बातों और मुलाक़ातों के सिलसिले समेट लाता है किसी का फ़ोन..ज़रूरी नहीं कि हर घंटी आपको परेशान करने के लिये ही बज रही है...तो सकता है कोई और भी परेशान हो रहा हो.
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7 comments:
और कहीं ये खो गया तॊ अब दिमाग की जगह मोबाइल ने जो ले रखी है, अब तो ये हाल है कि घर और अपने मोबाइल अलावा आपको किसी का नम्बर भी याद नहीं रहता, ये स्थिति मोबाइल के पहले नही थीं, अपनी बात मैं करु तो पहले मुझे १५-१६ नम्बर तो मुझे याद रहते थे पर मोबाइल के बाद २-४ तक सिमट कर रह गया है, वैसे अच्छा लिखा है आपने, शुक्रिया
तो भैय्या आप इत्त्त्त्ते झूठ बोलते रहते हो, और तो और भाभी जी से भी !! ( भाभी जीSSSSS कहां हो आप देख लो स्वीकार रहें है भैय्या कि आपसे झूठ ही बोलते हैं ये) :)
सही लिखा है आपने!! यह सब हमारे रोजमर्रा में शुमार हो चुका है!!
कितनी बार ऐसा हुआ है कि आप लोकल प्लेटफॉर्म पर बोरीवली में खड़े हैं और कोई गुजराती भाई व्यापारी बोल रहा है—हां हेलो, एक काम कर, मैं तो इस वक्त सूरत में हूं, तू निपट ले । मैं दो दिन में लौटूंगा । दफ्तर में कितनी बार लोग कहते पाये गये हैं कि वो शहर से बाहर हैं । बैठे आपके सामने हैं और फोन पर किसी से कह रहे हैं कि शहर से बाहर हैं । मोबाइल झूठ का पिटारा है । मेरे साथ तो कई बार ये भी हुआ कि सामने वाले ने नंबर पूछा है, और यक ब यक मुझे खुद का ही नंबर याद नहीं आया । आपके साथ भी हुआ होगा । यानी मोबाईल विस्मृति का रोग भी देता है ।
यह झूठ तो पूरे देश में फैल गया है।आपने सुन्दर वर्णन किया।कम से कम इस झूठ से बचे रहने का सन्तोष मिला।
मुझे तो संतोष है कि मुझे इस तरह के झूठ नहीं बोलने पड़ते!क्यों?....
भाई मेरे पास मोबाईल ही नहीं है और भगवान की दया से फिलहाल मुझे इस की जरूरत ही नहीं पड़ती।
anyatha na lena ....
hindi type nahi kar sakta .....
Jhooth bolna paap hai Nadi kinare saap hai.......
Sadhan badne se suvidha nahi badti, badti hai pareshaniyaan. Suvidhao ko gale se mat lagao unhe apne charno ki dasi sanjho.
Kaun rokta hai tumhe sach bolne se.
Sunil Solanki
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