Tuesday, April 8, 2008

मालव-माटी के सपूत , वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रभाष जोशी को इन्दौर में गुप्ता स्मृति सम्मान


प्रतिवर्ष नौ अप्रैल को हिन्दी पत्रकारिता का प्रमुख गढ़ माने जाने वाले शहर इन्दौर के लिये विशेष उल्लेख का वर्ष होता है. इस दिन नगर रिपोर्टिंग में अनुपम मुहावरे गढ़ने वाले स्मृति शेष पत्रकार श्री गोपीकृष्ण गुप्ता की याद में पत्रकारिता के क्षेत्र में विशिष्ट अवदान देने वाले क़लम सेवी का सम्मान किया जाता है.गोपीजी या गोपी दादा अलमस्त तबियत के इंसान थे और साधनविहीन समय में उन्होने सिटी रिपोर्टर के रूप में ऐसा कारनामा किया किया कि वे अपने जीवन काल में ही एक किंवदंती बन गए.आम-गरिक के गली-कूचों , प्रशासनिक हलकों और राजनैतिक हलचलों को सूंघ-सूंघ कर उसे ख़बर बनाना गोपी दादा के बाएँ हाथ का काम था. गोपी जी की ख़ासियत ये थी कि वे सामान्य मनुष्य बन कर ख़बरों की टोह लेते और अपनी मुहावरेदार हिन्दी में उसे उस समय के अग्रणी अख़बार नईदुनिया के पन्नों पर रच देते.


मैं फ़लाँ अख़बार का संवाददाता हूँ ऐसा कहकर अपनी पहचान बताने वाले कई पत्रकार मिल जाएँगे; किंतु गोपी दादा का जलवा ऐसा था कि जब वे कहते कि मैं गोपीकृष्ण गुप्ता हूँ तो समझ में आ जाता कि वह शख़्स नईदुनिया का धारदार पत्रकार है.ये कहना अतिरंजना नहीं कि गोपीकृष्ण गुप्ता अपने अख़बार के ब्राँड एम्बेसेडर थे.इन्हीं गोपीजी के दिंवगत होने के बाद उनके परिजनों और मित्रों द्वारा मिलजुल कर यह सम्मान प्रसंग आयोजित किया जाता है. होता तो यह है निहायत स्थानीय आयोजन किंतु उसमें घुली-मिली आत्मीयता की सुवास और गोपीदादा का स्मरण भारत भर में फ़ैले हिन्दी अख़बारनवीसों को श्रध्दा से भर देता है.अभी तक इस सम्मान से विठ्ठल नागर,रत्नेश कुसुमाकर, जवाहरलाल राठौर,जयकृष्ण गौड़,रामस्वरूप माहेश्वरी,,मदनमोहन जोशी,सुरेश सेठ,विमल झांझरी,नगेंद्र आज़ाद और अभय छजलानी नवाज़े जा चुके हैं.इस वर्ष गोपीकृष्ण गुप्ता सम्मान पत्रकारिता को अपनी क़लम से सींचने वाले मालव भूमि के वरद पुत्र,जनसत्ता के संपादकीय सलाहकार और वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रभाष जोशी को दिया जा रहा है.

दुनिया में दो बड़ी ताक़ते हैं-तलवार और क़लम। अंतत: तलवार क़लम से सदैव पराजित होती आई है। राष्ट्रीय ख्याति के मालवी-मना पत्रकार श्री प्रभाष जोशी ने भी पत्रकारिता के पुनीत पथ पर अपनी बेबाक क़लम से सदा नापाक को कुरेदा। समाज हो, राजनीति हो, खेल हो, संगीत हो या फिर संस्कृति-आपकी क़लम का खॉंटीपन हर कहीं खनका है।
"आटोमेटिक' के ज़माने में "आंचलिकता' और "पैसे' की दौड़ में "परम्परा' को सिर माथे बिठाकर प्रभाषजी ने पत्रकारिता का पुण्य कमाया है।
दिल्ली की दमक और शीर्ष प्रकाशनों की चमक में रहकर भी वे जूनी इन्दौर के ठेठ मालवी बने रहे हैं. सत्ता-सुंदरी के मोहपाश में न बॅंधते हुए प्रभाषजी ने "राजनीति' की जगह "काजनीति' को सलाम किया है. उनकी लेखनी ने अतीत के सुनहरे दौर से दिल लगाया है और वर्तमान की भौतिकता को भाला भी दिखाया है.
गॉंधी विचारों से गमकता प्रभाषजी लेखन निर्मल-सबल भारत का सपना गढ़ता रहा है।


जब भी हिन्दी पत्रकारिता की बात होगी; नये युग की नयी मशाल के रूप में "प्रभाष' का प्रकाश भी नई पीढ़ी की राह रोशन करेगा। नि:संदेह प्रभाष जोशी जैसे वरिष्ठ पत्रकार का सम्मान उस्ताद अमीर ख़ॉं, कर्नल सी.के. नायडू, पं. कुमार गंधर्व, केप्टन मुश्ताक अली और स्व. श्री राजेंद्र माथुर की रूह सहित पूरी पत्रकारिता बिरादरी का मान भी बढ़ाएगा.

साहस की स्याही से कर "कागद कारे'
जन-जन में फैलाए, सच के उजियारे

4 comments:

विभास said...

yah to pata tha ki reporting ke liye mere kuch dosto ko award mile hain lekin gupta samman se kabhi hamare naidunia ke kalamkar rahe prabhash ji nawaze ja rahe hai ye aapke blog se hi maloom hua...
update ke liye shukriya

Udan Tashtari said...

इस रिपोर्ट के लिये आभार.

अनूप शुक्ल said...

शुक्रिया इसे पढ़वाने के लिये।

Tanveer Farooqui said...

Sanjay bhai, Namaskar,
mujhe sirf squar hi nazar aa rahe hain,is ko padhne k liye mujhe kya karna ho ga'
agar aapko vaquat mile to mera blog bhi dekhen.http://tanveer-tasveer.blogspot.com/
.Tanveer