Friday, April 25, 2008

जातिवाद पर पर व्यंग्य करती परसाईजी की लेखनी.

हरिशंकर परसाई ने व्यंग्य विधा में अनूठे रंग बिखेरे और व्यवस्था,परिवेश और मनुष्य के स्तर पर नज़र आती तमाम बुराइयों पर अपने क़लम से फ़टकार लगाई.साठ साल के आज़ाद भारत की तस्वीर आज कितनी भी उजली नज़र आती हो..औरत,संप्रदाय,जाति,अशिक्षा,धर्म और छुआछूत के नाम पर स्थितियों में कोई ख़ास फ़र्क नहीं आया है.एक लघु कथा के ज़रिये परसाईजी ने कितने बेहतरीन नोट पर अपनी बात को ख़त्म किया आइये पढ़ते हैं....

जाति

कारख़ाना खुला.कर्मचारियों के लिये बस्ती बन गई.

ठाकुरपुरा से ठाकुर साहब और ब्राह्मणपुरा से पंडितजी कारखा़ने में नौकरी करने लगे और पास-पास के ब्लाँक में रहने लगे.

ठाकुर साहब का लड़का और पंडितजी की लड़की दोनो जवान थे.उनमें पहचान हुई और पहचान इतनी बढ़ी कि दोनों ने शादी करने का निश्चय किया.

जब प्रस्ताव आया तो पंडितजी ने कहा...ऐसा कभी हो सकता है भला ? ब्राह्मण की लड़की ठाकुर से शादी करे ! जाति चली जाएगी.

ठाकुर साहब ने भी कहा कि ऐसा नहीं हो सकता.पर-जाति में शादी करने से हमारी जाति चली जाएगी.

किसी ने उन्हें समझाया कि लड़का - लड़की बड़े हैं ..पढ़े-लिखे हैं..समझदार हैं..उन्हें शादी कर लेने दो.अगर शादी नहीं की तो भी वे चोरी छिपे मिलेंगे और तब जो उनका संबंध होगा वह व्यभिचार कहलाएगा...

इस पर ठाकुर साहब और पंडितजी एक स्वर में बोले...

होने दो.व्यभिचार से जाति नहीं जाती है ; शादी से जाती है.

2 comments:

Ghost Buster said...

कहानी आउटडेटेड है.

Tanveer Farooqui said...

Sanjay Bhai,Aapne mera blog me visit kiya aur comment kiya us k liye shukriya ! lekin comment main padh nahin paya kyonki mera computer hindi nahin padhpata hai.mujhe shayad windows fir se instual karna padegi !