Friday, July 27, 2007
हिन्दी प्रेमी ब्लाँग लेखकों और पाठकों के लिये एक ख़ास ख़बर !
अस्सी बरस पुरानी हिन्दी पत्रिका वीणा अब नये कलेवर में
हँस और सरस्वती के साथ जिस महत्वपूर्ण हिन्दी पत्रिका को विशेष आदर की दृष्टि से देखा / पढा़ जा रहा है उसमें से एक है इन्दौर से श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका वीणा.हिन्दी साहित्य समिति की गतिविधियों से हिन्दी जगत बाख़बर है फ़िर भी यहाँ यह दोहराने में कोई हर्ज नहींझोगा कि महात्मा गाँधी के पावन चरण दो बार(1918 और 1935) इस संस्था के परिसर में पडे़.अस्सी बरस की इस पत्रिका ने कई वित्तीय और प्रकाशकीय उतार चढ़ाव देखे हैं फ़िर भी यह इसका पुण्य और हिन्दी सेवियों की लगन है कि यह नियमित रूप से प्रकाशित होती रही है.वरिष्ठ साहित्यकार डाँ श्यामसुंदर व्यास स्वास्थ्यगत कारणों से इसके संपादक पद से अभी अभी निवृत्त हुए है और डाँ राजेंद्र मिश्र ने यह ज़िम्मेदारी बख़ूबी सम्हाल ली है. उनके साथ पदेन संपादक के रूप में पं.गणेशदत्त ओझा,उप-संपादक के रूप में श्री सूर्यकांत नागर और राकेश शर्मा,प्रबंध संपादक के रूप में प्रो.चन्द्रशेखर पाठक की ऐसी टीम है जो पूरी लगन और निष्ठा से हिन्दी के इस पावन प्रकल्प में अपना सहयोग दे रही है.संपादक डाँ.राजेन्द्र मिश्र ने आते ही अपनी योग्यता को साबित किया है और वीणा को नया कलेवर देकर इसके पन्नों मे जैसे नई रागिनी छेड़ दी है..
अपने ब्लाँग पर ये ख़बर जारी करने का निमित्त ये भी है कि हमारे हिन्दी ब्लाँगर बिरादरी वीणा जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशन के बारे में जाने.बडे़ सादा परिवेश में प्रकाशित होने वाली वीणा के पास इस काँर्पोरेट परिदृष्य में ऐसा कोई तामझाम या प्रमोशन कैम्पेन हे नहीं जिससे वह अपने आपको व्यक्त कर सके. ब्लाँग की दुनिया निश्चित रूप से हिन्दी प्रेमियों की एक ताक़त बन कर उभरी है और वीणा के शहर का एक साधारण सा ब्लाँगर होने के नाते मेरा नैतिक कर्तव्य है कि मै और आप ..हम सब वीणा के लिये जो कुछ कर सकते हों करें.
आपसे ये भी गुज़ारिश कर रहा हूं कि मेरी इस प्रविष्टि को बाक़ायदा काँपी कर अपने ब्लाँग पर भी सूचना(और बेझिझक आपकी अपनी प्रविष्टि या सूचना बज़रिये ई-मेल) के रूप में जारी करें.
इसमें हमारे एग्रीगेटर और चर्चाओं में रहने वाले और लोकप्रिय चिट्ठाकार खा़सी मदद कर सकते हैं .
सदस्य बनकर भी सहयोग किया जा सकता है.नीचे इसके बारे में विवरण दे रहा हूँ:
वीणा के जुलाई अंक के आवरण का चित्र ऊपर दे दिया है.
प्रकाशित सामग्री में से कुछ बानगियाँ भी दे रहा हूं
जुलाई अंक के संपादकीय से एक अंश
(भावभूमि :हाल ही में न्यूयार्क में सम्पन्न हुआ विश्व हिन्दी सम्मेलन)
अगर हिन्दी को आना है तो सबसे पहले उसे स्कूलों में एक शिक्षा माध्यम के रूप में अपनाना होगा नहीं तो विश्व भाषा के लिये किए जाने वाले प्रयास एक तमाशा बन कर रह जाएंगे.हिन्दी विश्व की भाषा बन जाएगी , भारत की भाषा नहीं और जब तक वह भारत की भाषा नहीं बनती,तब तक उसके विश्व भाषा बनने का कोई भी अर्थ नहीं है.जब तक हिन्दी दिल्ली में नही होगी तब तक उसका लंदन या न्यूयार्क में होना प्रासंगिक नहीं है.
- राजेन्द्र मिश्र.
लघुकथा : सनकी
ब्रीफ़केस बंद करता हुआ वह जैसे ही बाहर निकला, अर्दली ने झुककर सलाम किया.
अर्दली को उसने इशारे से बुलाया तथा बीस रूपये का नोट बतौर बख्शीश देते हुए बोला...चाय पानी के लिये.
साहब ये तो बहुत ज़्यादा है...!
उसके ईमानदार चेहरे की ओर उसने मुग्धभाव से देखा तथा बीस का नोट लेकर
बदले में पचास का थमाते हुए गाडी़ स्टार्ट कर दी.
स्टेयरिंग घुमाते हुए वह सोचने लगा...'काश ! अंदर की कुर्सी पर अर्दली जैसा आदमी होता !
और अर्दली सोचने लगा ...काश ! ख़ुदा ने हर आदमी को इस जैसा बनाया होता.
-सतीश दुबे
इसी अंक के अन्य ह्स्ताक्षर : गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर,स्वामी वाहिद क़ाज़मी,
डाँ.माधवराव रेगुलपाटी,सूर्यकांत नागर,जवाहर चौधरी,पदमा सिंह.
हिन्दी मासिक पत्रिका : वींणा
संपादक:डाँ राजेन्द्र मिश्र.
मोबाइल: 09302104498
शुल्क :
विदेशों में : 20 डाँलर
वार्षिक मूल्य : रू.150/-
आजीवन : रू.500/-
(ध्यान रहे 7 अगस्त 2007 से यह शुल्क बढाकर रू.1500/- किया जा रहा है)
अपना ड्राफ़्ट ’वीणा मासिक पत्रिका के नाम से भेजें,इन्दौर मे देय)
संपर्क:
श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति
11 रवीन्द्रनाथ टैगोर मार्ग
इन्दौर 452 001 मध्य प्रदेश
दूरभाष: 0731-2516657
(अमूमन संपादकीय टीम शाम 5 बाद उपलब्ध रहती है
कोई ई मेल आई डी नहीं है..कोई संदेश हो तो मेरे ईमेल
पर भेज दें मै उसे पहुँचा दूंगा:sanjaypatel1961@gmail.com
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12 comments:
पुराने दिन याद आ गये । लाईब्रेरियों की खाक छानने का शग़ल बचपन से रहा है । वीणा शायद अंतिम दौर में रही होगी । अकसर थोड़ा थोड़ा पढ़ा है ।
अच्छी खबर दी आपने ।
बढि़या है। बधाई!
समय से सही जानकारी देने के लिए बधाई.
बहुत बहुत् बधाई हो .
बढिया जानकारी दिया है भाई, क्या इसका वितरण बुक स्टालों के माध्यम से भी किया जा रहा है ।
मित्रों..
वीणा के पास वितरण को लेकर कोई नेटवर्क नहीं है; अत: स्टाँल पर नज़र नहीं आती..
बस सदस्यों का आसरा है.हिन्दी साहित्य समिति के आजीवन सदस्यों तक भी पहुँचती है वीणा.समय रहते इसकी वेबसाइट भी बने ऐसा प्रयास हो रहा है.लेकिन बहुत सारे वित्तीय और प्रशासकीय अवरोध हैं इसके विस्तार और वितरण में .उम्मीद करें कलेवर के साथ और भी बहुत कुछ बदलेगा वीणा में और आएगी इसके तारों में नई चमक.
जानकारी के लिए धन्यवाद.
जानकारी देने के लिए धन्यवाद. आजीवन सदस्यता भी काफी आकर्षक है. डीडी या चेक किस नाम से भेजें ये भी लिख दें तो अच्छा रहेगा
29 तारीख के www.Sarathi.info मे इस खबर को पेश किया जायगा.
आजीवन चंदा भी उनको भेज दिया है. इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिये आभार
-- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
सुखद खबर!!
आभार के साथ बधाई!
कौन से डॉ राजेंद्र मिश्र हैं?
रायपुर निवासी प्रख्यात समीक्षक?
badhiya khabar hai, lagta hai hindi ki saanse bhi chalati rahengi.
Aadarnya Sanjay Patel ji!
sadar Pranam !
Aaj Pahali Bar Hi Log kiya and Aap ki profile dekhi he!
Mere Pujya Dadaji Pt. Ramchandra Ji Joshi Bhi Veena Patrika ki janmawstha se Jude rahe he! Vaise mere pas koi Jankari likhit me nahi but Unke dehawsan ke Bad 1949 Sept me VEENA me Unake Bare me Lekh Chhpa tha!
Kya Aap Muze Bata Sakte he ki Muze us patrika ki koi Copy mil Sakati he Kya?
Krapaya suchit Karane ka kast kare ! joshiani@gmail.com
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