डाक्टर शिवमंगल सिंह सुमन को मालवा में याद करना यानी उस शख्सियत को याद करना है जिसने अपने साहित्य कर्म से पूरे परिवेश को सुरभित किया. तिथि के अनुसार नागपंचमी के शुभ दिन सुमनजी का जन्मदिन आता है.१८ अगस्त को सुमनजी का जन्म दिन जब मना रहे हैं वे हमारे बीच नहीं है. उत्तरप्रदेश के उन्नाव से बनारस,ग्वालियर होते हुए सुमन जी मालवा की सांस्कृतिक राजधानी औरपुण्य सलिला शिप्रा के किनारे बसे विक्रमादित्य और कालीदास की नगरी उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति बन कर क्या आ गए...पूरा मालवा निहाल हो गया. उनकी ओजपूर्ण वाणी,भव्य व्यक्तित्व और प्रवाहपूर्ण लेखन मालवा को जैसे एक पुण्य प्रसाद का सुख दे गया.मानो मालव वासियों की साध पूरी हो गई॥जीवन की अंतिम बेला तक डाँ.सुमन को उज्जैन और उज्जैन को डाँ. सुमन को अपने प्रेमपाश में बांधे रखा.महादेवी,प्रसाद,निराला,तुलसीदास,ग़ालिब,मीर,जायसी,सूरदास, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल,प्रेमचंद ,मैथिलीशरण गुप्त पर धाराप्रवाह बोलने वाले डाँ.शिवमंगल सिंह सुमन ने मालवा ही नहीं पूरे हिन्दी साहित्य जगत को अपनी अभूतपूर्व मेधा से स्पंदित किया. सुमनजी आज मालवा में नहीं हैं लेकिन शिप्रा,चंबल,नर्मदा,उज्जैन और इन्दौर का पूरा साहित्यजगत उन्हें अब भी कहीं अपने करीब महसूस करता है. उन्होने अपने काव्य वैभव से पूरे हिन्दी जगत को अप्रतिम स्नेह दिया है..इस स्नेह से मिली उर्जा से उनके रोपे कई काव्य और साहित्य हस्ताक्षर लहलहा रहे हैं.यकी़नन सुमनजी जिस भी लोक में है ..अपनी उसी छटा से काव्य पाठ में व्यस्त होंगेजो न केवल रसपूर्ण थी बल्कि विलक्षण भी. आत्मकथ्य के रुप में उन्ही की काव्य पंक्तिया पढते हुए उन्हें आदरान्जली देते हैं ....
मैं शिप्रा सा ही तरल सरल बहता हूँ
मैं कालीदास की शेष कथा कहता हूँ
मैं शिप्रा सा ही तरल सरल बहता हूँ
मैं कालीदास की शेष कथा कहता हूँ
मुझको न मौत भी भय दिखला सकती है
मैं महाकाल की नगरी में रहता हूँ
हिमगिरि के उर का दाह दूर करना है
मुझको सर,सरिता,नद,निर्झर भरना है
मैं बैठूं कब तक केवल कलम सम्हाले
मुझको इस युग का नमक अदा करना है
मेरी श्वासों में मलय - पवन लहराए
धमनी - धमनी में गंगा-जमुना लहराए
जिन उपकरणों से मेरी देह बनी है
उनका अणु-अणु धरती की लाज बचाए